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धन्ना०
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|शा माटे एवको दुःख आपे वे एहने कु०, कोई दीठो होय अपराध कहीजे तेहने कु० ॥ | पि सघलीने समकाल कहो किम खीजीए कु०, खीर नीर परे एक तार प्रियाशुं कीजी एकु ॥ १३ ॥ ए प्रत्तावंत महेयतली वे बालिका कु०, सुकुलीलीमां शिरदार वचन प्रतिपालिका || कु० ॥ परली जे पंचनी साख ते पालवधी जमी कु०, तेहने वि श्रवगुएा | देखी खीजीजे किम ची कु० ॥ १४ ॥ सुली मातनां वयल विशेष न रेष बोल्यो फरीरी कु०, योगें परे घरी ध्यान बेगे मन दृढ करी कु० ॥ कही चौदमी ढाल रसाल ए चोथा उल्हासनी कु०, इम जिनविजये मन रंग कल्पद्रुम रासनी कु० ॥ १५ ॥
॥ दोहा ॥ एहवे ते राजगृहे, धर्मघोष मुनिराज ॥ समवसस्या सुपरे तिहां, ?पण सय साधु समाज ॥ १ ॥ वनपालक आपे तिहां, वर्धापनका वेग || शालिकुमर ते सांग ली, अधिक लहे संवेग ॥ २ ॥ जिम रसवति सवि नीपने, घृत मिले रस होय जेम ॥ ति म शालिन वैराग्य में, साधु संयोगशुं प्रेम ॥ ३ ॥ देई तास वधामली, इय रथ बेसी देव ॥ परिवृत बहु परिवारथी, गुरु वंदन ततखेव ॥ ४ ॥ पांचे अभिगम साचवी, वंदे समतानीप || देशना अमृत अधिक, निसु सुगुरु समीप ॥
५ ॥
१. पांचशे.
२वधामणी.
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नु०४
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