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नही, वली न हुवे हो कोइनो आधार के ॥ ज० ॥ ए ॥ यौवनमें जेहने नही, कांता दिक | हो ते लिये वली दीख के || मान तजी मधुकर परें, मध्याने हो जमे लेवा नीख के ॥
० ॥ ६ ॥ तूं तो सुख में ऊबस्यो, नवि जाणे हो सेवकने स्वाम के || वंबित सघलो ताह रे, पूरे देवता हो सुत स्नेह सुकाम के ॥ ज० ॥ ७ ॥ संयम लेइने शूं तुमे, पुत्र साधशो | हो मुजने को प्रत्र के ॥ देवजोग तुम पास बे, अधिको किशो हो सुख पामवो तत्र के ॥ ० ॥ ८ ॥ तव कहे शालिकुमर शुं, संयमथी दो लहिये सुखवास के ॥ माथे नाथ न | संपजे, वली कोइनी हो करवी नही आश के ॥ ज० ॥ एए ॥ सुनिश चित्त चिंतवे, वात कुंकी हो कहे कवण प्रकार के । तात परें ए पि सही, ढंकी जाशे हो ए सवि घरबार के ॥ ० ॥ १० ॥ कहे सुल पुत्र तूं चित्तथी, व्रत दोहिलां हो मुनिवरनां तंत के ॥ मेल | दांत लोहमय चणा, चावंतां दो अति तेह दूरंत के ॥ ज० ॥ ११ ॥ गंगा सनमुख चालवो, रत्नाकर हो तरवो निज बांह के || वायथी जरवा कोयला, जिम दुर्भर हो तिम संयम चा इ के ॥ ज० ॥ १२ ॥ पंच महाव्रत पालवां, वली टालवा हो बेतालीश दोष के || पंचाचारने यत्नश्री, निरदोषे हो करवो तस पोष के ॥ ज० ॥ १३ ॥ क्रोध कषाय न राखवा, नवि नाखवा हो असमंजस बाल के || शत्रु मित्र सम धारवा, वली वारवा हो मद आठ अतो
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