Book Title: Dhanna Shalibhadrano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek, 
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 244
________________ पन्ना० तव पालशे, माहरे को न त्रोटोरे॥न ॥ ३ ॥ बत्रीश वहुने रे बालक आवशे, ते आलं १२१ | बन श्राशे रे॥ दैवे वात न को पूरी करी, शू जाणे ईम जाशे रे ॥न० ॥४॥ यतः । ॥आर्यावृत्तम्.॥ अघटितघटितानि घटयति, सघटितघटितानि जर्जरीकरुते ॥ विधिरे है वतानि घटयति, यानि पुमान्नैव चिंतयति ॥१॥ नावाश्रः-दैव जे , ते जेमतेम घमेली चीजोने सारी बनावे ने अने सारी रीते गगरी मगरेली चीजोने खोखरी करी नांखे ! है। माटे दैव चीजोने तेवीज बतावे ले के, जेनो पुरुष पण विचार न करी शके! अर्यात् दैव४नी अकल शक्ति ने ॥१॥ माहरो दैवे रे प्रायु अधिक कस्यो, जे दुःख देखण बेबी रे । । नाग कंचकी परे तं बंमे ईहां. तज विरहानले पेठी रे॥न॥॥ को न बालक पाउल ताहरे, जे आलंबन कीजे रे॥ पूरवकृत फल सवि भावी मीडयां, दोष ते केहने दीजे रे । ॥न ॥६॥ नव मसवामा रे नदरे ऊधस्यो, बालपणाश्री पोष्यो रे ॥ ते कोश्क दिन करे। कारणे, नवि जाणुं ईम दोशो रे ॥न०॥॥ ए बत्रीशे रे सुंदर गोरमी, शे दोषे तुं के रे॥ सुकुलीणीने रे खीजववा नणी, एवमो शो हठ ममेरे ॥नः॥॥ ए कगेर नंमार धने 81 नस्या, तेहने कहो शू कीजे रे ॥तेह थकी अमे विविधे वीन, पिण तूं तिल नवि नीजे रे ४ ॥न ॥ ए॥ तुम विरहे एक कण ते मुज प्रते, वरस समाणी श्राशे रे॥ तो कहे कुमर 45 Jan Education Leational For Personal and Private Use Only Linelibrary.org

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