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॥ ६ ॥ इहने कोई धारतध्यान के ग्यान हीये वशो सा०, तिले करी श्रम नपर राग हतो ते सवि खशो सा० ॥ जालानां मन परिणाम नदासी एहनो साथ, इसे मया नोग सं| योग मगन नही केहनो सा० ॥ ७ ॥ एहनो श्रम ऊपर स्नेह कहो किम आवशे सा०, ए आखर ढंकी धाम आराम वसावशे सा० ॥ श्रमने मनमें नदवेग जाएयो ए ऊपन्यो सा०, कोइ पूरव कर्म विशेष थकी इहां नीपन्यो सा० ॥ ८ ॥ ते माटे कर ए प्रयास पूो तुमे जातने सा०, ते पिए मन केरी वात कदेशे मातने सा० ॥ पढे जोई कारण | कार्य विचारी चित्तश्री सांप, कदेवो घटे तेहने नलंन देज्यो शुभ रीतथी सा० ॥ ए॥ तब जश बहुअर वात सुणी विक्रम थई कुमरजी, जिहां बेो शालिकुमार तिहां तत कल गई || कु० ॥ देखे मुख नूर ते सूर जिझो वादल की कु०, वली गीतने श्राकार विलोकने की कु० ॥ १० ॥ बोलावी घरी बहु नेह सुस्नेह वाक्ये करी कु०, कहो पुत्र जी माणाधार एशी चिंता घरी कुण व्यापार वणिज घर हाट नचाट न ताहरे कुण्, लेहला देहलानी वात ते सघली मादरे कु० ॥ ११ ॥ तुज देखी अगम आलोच ते सोच प्रिया घरे कु०, तुज मुख देखी दिलगीर जोजन पिएा नवि करे कु० ॥ न करे वली सकल शृंगार दारादिक नवि गमे कुए, करे रुदन घरी मन दुःख दिवस इम निर्गमे कु० ॥ १२ ॥
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