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अ जी, वलि कुसुमपालादि अनेक ॥ सु॥ ते पिण प्रेमे हो राज लिखे ले प्रतिदिने, ते४ मावे बे धरिय विवेक ॥ सु० ॥ अ०॥मा तव पति हो राज आखे धन्नाशाह प्रते जी.शी ४ वात कही तुमे एह ।। गुणवंता जी॥अमे तुम शं हो राज करी खरी प्रीतमी जी, पिण तुम मनमें नही तेह ।। गुण ॥ किम दीजे हो राज कृपा करी शीखमी जी ॥ए आंकणी ॥॥ इहां बेग हो राज लोला सुख नोगवो जी, अमने जे तुमचो आधार ॥ गु०॥ तुमसरिखा हो राज मिले किहांथी सगा जी, सवि सुविहित जन शिणगार । गु०॥कि ॥६॥ तव धन्नो हो राजनूधव प्रतेश्मनणे जो, तुम साहिब शुं कहो एम ॥सु०॥ अम | ने जाणजो हो राज सेवक करी ढकमा जी, तुमचो केम विसरे प्रेम ॥॥अ॥७॥ धरणीधव हो राज धनाने तव दिये जी, अति सुंदर तरल तुखार ॥ गुण ॥ गज घोमा होले राज सुखासन रथ नला जी, वलि मणि माणिकमय हार ॥ गुण कि०॥ ७॥ शीख ले। ने हो राज चाल्या राजगृहि नणी जी, दयिता दोय लेई संग ॥ गु० ॥ शुन्न शुकने हो ।
राज बहुल परिवारथी जो, मन धरता अति नबरंग ॥ सु०॥०॥णा दीन केते हो राज है लक्ष्मीपुर आवीया जी, तिहां राय जितारी सुविशेष ॥ गु०॥ खाग त्यागे हो राज सब हाल सवि नृपथकी जी, अरि नासी गया परदेश। गु०॥ नवि सुणजो दो राज प्रबल फल
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