________________
धन्ना०
१
रागिणी वलि बत्रीश || मिश्रित पट पट तेहनी, उपरागिणी सुजगीश ॥ ७ ॥ ते नादे लीना तुरत, वे मृगना वृंद ॥ व्याघ्र व्याल सवि वश थया, निसुली गीत मंद ॥ ८ ॥ हारा लंकृत ते मृगी, आावी प्रति अभिराम ॥ घोषवतीना स्वर थकी, लय पामी तिथे गम ॥ ए ॥ धन्नो वीरा वजावतो, ते मृगी लेई संग ॥ चाल्यो लक्ष्मीपुर जणी करतो क्रीमा रंग ॥ | १० || नगर मांही ते संचस्यो, मृगीयुत नृप दरबार || पहोत्यो ते देखी नृपति, कौतुक ल| दे अपार || ११ || नगर लोक विस्मय लहे, देखी मृगिनो थट्ट | ए शूं दीसे देवता, नर रूपे परगट्ट ।। १२ ।।
॥ ढाल १७ मी. ॥ ( राजूल बेटी मालीए. - ए देशी. )
गीतकला गुण सांगली, मन हरखी हे प्रतिही आणंद के || पूर्ण प्रतिज्ञा माहरी, एले कीधी हे ए पूरण चंद के ॥ पुण्य संयोगे साजन मीले ॥ १ ॥ ए ग्रांकण ॥ श्रलगां टले हे वली कष्ट वियोग के ॥ मनवंबित सफलां फले, वली रूमा हे दिन पूरण जोग के ॥ ५० ॥२॥ राजा ऽमात्य सेनापति, शेठादिक हो सवि करे परसंस के || धन धन गीतक ला सती, पति पायो हे उत्तम अवतंस के ॥ ५० ॥ ३॥ हार लियो मृगी कंथी, तब कन्या | द्रे वरमाल नदार के || धन्नाने कंठे ग्वे, सहु जांखे हे मुख जय जयकार के ॥ पु० ॥ ६ ॥
For Personal and Private Use Only
Jain Educationaational
नु० ३
१
jainelibrary.org