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धन्ना० आपनारने जे फल थाय , ते फल जिनेश्वरे जाण्यु ले. अर्थात् दान आपनारो पारधी न०३
नरके जाय ले अने दान लेनारां माब्लां मरण पामे ! ॥२॥ श्लोक लिखी एक पत्रमें, 51
पाउल लिखे हे गुप्तार्षिक पद्य के ॥ अर्थ विचारी एहनो, तुमे लिखजो हे नामिनी मुज है। सद्य के ॥ पु०॥१०॥ न लगेनाग नारिंगे, निंबे तुंबे पुनर्खगेत् ॥ काकेत्युक्ते लगेन्नैवं, मा । मेत्युक्ते पुनर्खगेत् ॥ ३॥ नावार्थः-नाग अने नारंगीमां नेगा न थाय, पण निंब अने तुंPबमां नेगा पाय! तेमज वली काक बोले ते नेगा न थाय, परंतु मामा एम बोले उतेने
गा थाय! हे कन्या! एवं शुं हशे? ॥ ३ ॥ न तस्यादौ न तस्यांते, मध्येयश्च व्यवस्थितः॥
तवाप्यस्ति ममाप्यस्ति, यदि जानासि तदः ॥ ४॥ नावार्थः-जे चीज आदिमां नथी । से रहेती, तेम अंतमां पण नथी रहेती; परंतु वचमांज रहे . वली ते चीज तारे पण अने।
मारे पण ! तो, हे कन्या ते शी चीज? ते तुं जागती होय तो कहे ! ॥४॥ कन्या वांची पत्रमें, निज मननो हे ते पामी अर्थ के ॥ पिण धन्नोक्त सुश्लोकना, नाव न लहे दे न | यम थयो व्यर्थ के ॥ पुण् ॥११॥ तव बेसीने सुखासने, सखी साधे हे गई धन्ना गेह के। लाज थकी कहे श्लोकना, नवि पामी हे हुं अर्थ के जेह के ॥पु०॥१॥ तब धन्नो कहे 'नष्ठ
१ होठ.
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