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धन्ना०
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बहुर सघली साथ || आमंबरथी यावे हो जले जावे गुरु चरणांबुजे, वंदे जोमी हाथ || हवे || १३ || रिचित सहुनो जाली हो गुणखाणी, गुरु दिये देशना, कहे तजो पंच प्रमाद ॥ बकायने चित धारो हो तुमे वारो हिंसा तेहनी, ढंको जीन सवाद || एहवे ॥ १४ ॥ चार कषायने जीपो हो जिम दीपो श्री जिनधर्ममें, पालो प्रवचन मात ॥ पंचाश्रव तुमे वारो दो वलि धारो दशविध धर्मने, तिम टालो जय सात ॥ एहवे० ॥ १५ ॥ बलीया जो प्रति थान हो तो धान शिवमंदिर जली, पंच महाव्रत लेय ॥ तप जप संयम करणी हो प्रति सुखनी वरली एह बे, त्रिकरण शुद्ध करेय ॥ एहवे० ॥ १६ ॥ श्रावक धर्म संज्ञालो हो जुप्रालो दादश जेदश्री, आणी मन नजमाल ॥ चोथे नव्हासे गावे दो मन ना| वे बडी ढालमें, जिन इम वचन रसाल ॥ एवे ॥ १७ ॥
॥ दोहा ॥ देशना सांजली दिल उस्यो, धन धन कहे धनसार || मानव जवनो श्रा ज में, लाज कह्यो सुप्रकार ॥ १ ॥ प्रमुदित थई पूढे तदा, बिहुं करजोमी शेठ ॥ कृपा क री प्रभुजी कहो, पूर्व जवांतर ठेव ॥ २ ॥ धन्ने शी करणी करी, जिणे करी पाम्यो श६ि ॥ दुःख नवि दीगे देहथी, पद पद सकल समृद्धि ॥ ३ ॥ त्रिएय मोटा सुत साहसी, धनदत्ता दिक जेह || पामी पामी हारवे, शे करमे दुःख तेह || ४ || शालिन भगिनी जली, स
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