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घना० स्वामी हेव हे ॥ सा ॥ दे ॥३॥ आसन बेसण अति जलां, सहुकोने सुप्रकार हे ॥२०॥ ११०
सा॥ नृपने मणिरयणे जड्यो, नशसन सुखकार हे ॥ सा०॥ दे॥४॥ बाल कचोलां नारयणनां के कंचनमय कांत हे ॥सा०॥कारी प्रमख विविध सवे. नचित दिये तिणि पांति हे ॥ सा ॥ दे०॥॥ ततक्षण देव प्रयोगश्री, नोजन विविध प्रकार हे ॥ सा०11 ॥षटरस सरस सवादथी, निपन्या ते मनुहार हे ॥ सा०॥ दे॥६॥ पक्वान्नादिक अति नला, बत्रीश नातिनां शाक हे ॥ सा ॥ मेवा मीठगई घणी, नव नव नातिना पाक हे ॥ सा०॥ दे०॥ ७ ॥ नंदन वननां नृप प्रते, कल्पद्रुम फल खास हे ॥ सा० ॥ पिरसे नज्ञ प्रेमशं, अति सुस्वाद सुवास हे ॥ सा०॥ दे०॥७॥ पिरसणिया पिरसे तिहां, देव सरूपी है सुरंग हे ॥ सा०॥ देखी नृप विस्मय लहे, नोजन स्वाद सुचंग हे ॥ सा० ॥ दे॥॥ 2. शालि अनोपम नपती, विविध प्रकारनी दाल हे ॥ सा०॥धृत गोरसथी शोन्नती, जमते ||
हर्ष विशाल हे ॥ सा ॥ दे ॥ १० ॥ सैन्य सकल सुपरे तिहां, नोजन करे नली नांत है | |४॥सा०॥ जिम फूके पर सैन्यथी, तिम फू धरी खांत हे ॥सा ॥ दे ॥११॥ अथ |3
नोजनवर्णनम् ॥ सवैया एकत्रीशा. ॥ मोतीचूर चूर कर जलेबी खाजेप कर दोट दिये दो छ ठे पर लाडुशुं लरीजीए, घेवरको घेर कर मासेंती पेट नर पतासेको पास धर लापसीकुं । ११०
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