________________
६०॥ सु०॥७॥ खबर करावी तेहनी हो लाल, सु॥ सोंपावो ते सदीश हो ॥ ६० ॥ ० ॥ पूरे सुसरो एहनो हो लाल, सु० ॥ श्रास्फाले निज शीश हो ॥६०॥ सु० || || इन्यादिकनां | हवा हो लाल, सु० ॥ वचन न धारयां कान हो ॥ ६० ॥ सु०॥ तव चमक्या ते वाशिया हो लाल, सु० ॥ अन्योन्ये करे- सान हो ||धासु०|||| करी प्रणाम कटी गया हो लाल, सु० ॥ सहु को निज प्रागार हो ॥६०॥ सु० ॥ धनपति मंदिर प्रागले हो लाल, सुणा पोकारे ध नसार हो || घणसु० ||१०|| रे घनशेठ तुं माहरी हो लाल, सु०॥ आपो वधु इसी वार हो ॥६०॥ ॥ न्याय तुम नवि घटे हो लाल, सु०॥ जुन्ने हृदय विचार हो | ध० ॥ ● ॥ ११ ॥ अ परदेशी पाहुणा हो लाल, सु०॥ डुस्थित जनमां लीइ हो ॥६०॥ सु॥ तूं पदुःख मंजक अबे हो लाल, सु० ॥ सा पुरिसामां सिंह हो ॥ ध ॥ सु० ॥ १२ ॥ यतः ॥ | आर्यावृतम् ॥ विरला जाणंति गुणा, विरला पालंति निहला नेहा ॥ विरला परकऊ परा, पररक डुश्किया विरला ॥ १ ॥ जावार्थ:- गुणना जानार, निर्धननो स्नेह पालनार अने परनां कार्य करवामां तत्पर, एवा पुरुषो विरला होय बे; परंतु ते करतां पण पारका दुःखे दुःखीघ्रा तो तेथी पण विरला होय बे ॥ १ ॥ तव धनसार तेमाविने हो लाल, सु० ॥ धनो प्रणमे पाय हो । ध० ॥ सु० ॥ श्रविनय खमज्यो तातजी हो लाल, सु० ॥ मुजश्री क
Jain Educationaational
For Personal and Private Use Only
jainelibrary.org