________________
Jain Education
॥ उल्लास ३ जो. ॥
॥ दोहा ॥ श्री जिनगुरु प्रणमुं मुदा, धर्मध्यान घरि खास ॥ दान कल्पद्रुम रासनो, थी जो नहास ॥ १ ॥ वर्णवशुं मन मोदी, श्रुतदेवी सुपसाय ॥ श्रोता जन सवि | सांजलो, अति उत्तम सुखदाय || २ || शाह धन्नो सुखमें रहे, सप्तभूमि ग्रावास ॥ नाटक | विविध प्रकारथी, निरखे चित्त नव्हास || ३ || एहवे एक दिन श्रावता, दीग पितृस्वरूप || त्रिपि तिहां, कांतायुत विद्रूप ॥ ४ ॥ वस्त्र जीर्ण वसुधी रहित, पशु विलिप्त | शरीर || दंग खंम करमें घरी, प्रातुरवंत अधीर ॥ ५ ॥ चाले पग पग पूबता, राजगृहनी | पोल || देखीने चित चिंतवे, ए शी दीसे बल ॥ ६ ॥ नकयनीमां एहने, मूक्या बेशुन काम || हवी अवस्था किम थइ, एहतो वो विराम ॥ ७ ॥ इम चिंती कट्यो तुरत, म होल थकी मनरंग ॥ प्राव्यो अति उतावलो, मात तातने संग ॥ ८ ॥ तात चरण सुपरें नमी, मिल्यो मन दरखे मात ॥ बांधव जोजाई प्रते, प्रणमी पूढे वात ॥ एए ॥ ॥ ढाल १ ली. ॥ ( देशी चोपाइनी. )
पूरे धन्नो विनयेवात, कहो तात ए शो अवदात ॥ में मुक्या हता सुख ग्रावास, एह अवस्था किम हुए तास ॥ १ ॥ तव कदे तात सुलो रे पूत्र, तुम जातां विषठ्यो घर सूत्र ॥
national
For Personal and Private Use Only
jainelibrary.org