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त्री समय नदरे व्यथा, अन्न अजीर्ण ते पाय हो।गापु०॥१५॥ यतः ॥ अनुष्टुवृत्तम्.॥ अजीर्णतपसःक्रोधो, ज्ञानाजीर्णमहंकृतिः ॥ परतापिक्रियाजीर्ण, मन्नाजीर्ण विषचिका ॥ १॥ नावार्थः-तपर्नु अजीर्ण क्रोध, ज्ञान- अजीर्ण अहंकार, कोयानु अजीर्ण परने परि । ताप नपजाववो तेमज अन्ननुं अजीर्ण नलटी अने कामो जाणवू. ॥१॥ ते पीमायी मृ । त्युने, पामे संगम वाल हो । सुं०॥ बीजे नुहासे जिन कहे, चौदमी ढाल रसाल हो ॥ सु०॥ पु० ॥१६॥
॥दोहा॥ ते राजगृहमें वसे, गौन शेठ गुणवंत ॥ धनश्री धनद समान , न्याय नीति पुण्यवंत ॥१॥नश लामिनी तेहनी, रूप कला आगार ॥ राधा कृष्णतणी परे, विलसे विविध प्रकार ॥२॥ हवे ते संगम जीव चवी, ना नर नुत्पन्न ॥ सुपन मांहि तव शालिनो, दीगे केत्र निष्पन्न ॥ ३ ॥ फल पूब्यो नरतारने, सुणी शेठ सुविलास ॥ पुत्र ।
रत्न होशे नलो, कुलमंझन सुप्रकाश ॥ ४ ॥ दंपति दिन दिन अति मुदित, रहे सदा सुप्र 18 सन्न ॥ पूर्ण मास पहोते अके, जनम्यो पुत्र रतन ॥५॥
॥ ढाल १५ मी. ॥ रामचंद के बागमें, चांपो मोरी रह्योरी,- ए देशी.) प्रसव्यो पुत्र सुरंग, नज्ञ हर्ष धरेरी ॥ शेठ सुणी तव वात, नचच अधिक करेरी ।।
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