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|| कोशंबी पण काज न सीध्यो, मृगावतीथी एहनो.।। नजयिनं। गढ पाई। एणे, रदूर्ग 18/ कराव्यो तेहनों ।। दे॥५॥ दासी काजे नदयन आगल, युद्ध करंतां जागो ॥ मम दासी
पति नाम एडवो, निलवट मांदी लखाणो॥ दे०॥६॥ धुंधुमारगुं धंध मचायो, अंगारव तीने देते ॥ तिहां पण शरम गमावी पापी, परण्यो नाग्य संकेते । दे०॥७॥ युद्ध करता है
जन हय पाए, सकल प्रजा सीदाये ॥ यु कख्या विण जय थाए तो, युछ न कीजे प्राये। ३॥०॥७॥ यतः॥ अनुष्टुवृत्तम्. ॥ पुष्पैरपि न योव्यं, किं पुनर्निशितैः शरैः ॥ युर | विजयसंदेह, प्रधान पुरुष दयः॥१॥ नावार्थः-फूलवमे पण युइन करवू जोए, तो धारवाला बाणवमे युक्ष करवानी तो वातज शी? कारण के, युको जीतनो संदेह ने अने तेमां प्रधान एटले नुत्तम पुरुषोनो दय थाय .॥१॥ अन्नयकुमारे बुद्धि नपाई, धन है धरतीमें धराव्यां ।। गुप्तपणेथी झैन्य स्थलमें, अति प्रसन्न कराव्यां ।। दे॥॥पत्र लि-17
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१संतानिक राजानी राणी अने चेमाराजानी पुत्रीएवी मृगावती राणीसाथे, विषय मुख जोगवा नी तालचथी र चम्पद्योतने पोतानी नायिनी नगरीनो कोट पाडी नांखी, ते योथी कांशंबी नगरी नो कोट करावी याप्यो, तथापि तेनुं काम बन्यु नहीं. बीजा ग्रंथोमां. एम ने के, नायिनी नगरीथी हार बंध मागासो नजा राखी नऊयिनीनी अयोथी कोट करवी बाप्पो..
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