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२॥ नृप श्रेणिकनो ठे अधिको तसुपरी मान जो, दानादिक गुण निपुण विशेषे वखाणियो
रेलो ॥१॥ तस कांता शांता कुसुममाला मनोहार जो, पुत्री ने गुणवंती कुसुमश्रीनवाली रे लो॥ कला चोशग्नुं गृह रूपे रति अवतार जो, बुझेनारति दानगुणे लक्ष्मी वली
रे लो ॥२॥ तस शेउने वन हुतो नंदनवन सम एक जो, कोई कारण वशश्री सूकाइ ते ग । यो रे लो॥ एहवे ते धनकुमर तिहां आवे रंग जो, पुण्य प्रत्नावे वन सवि नवपल्लव थयो । शारे लो॥३॥ ते देखी पुरजन हरखित हृदय सकार जो, आवीने प्रत्यूषे आपो वधामणीरे
लो ॥ सुणी प्रमुदित मनथी शेठ सकल परिवार जो, आवीने निरखे तव वन शोना घणी रे ।
लो॥४॥ मन चिंते विस्मित प्रश्ने एदवी वात जो, केहने पुण्ये वन सर्वे फूल्यो फल्यो। दरे लो ॥ तव वन ढुंढतां चंपक तरुवर हे जो, बेगे रे दागे ते नाग्यथी अटकल्यो रे लो। P॥५॥ तस इंगितने आकारे ते शुन्न रूप जो, देखी रे मन हरखो परखे ततहणे रे लो॥
जिम रत्नपरिक्षक परखे रत्नने काच जो, बुबिलीने परिक्षा तिम कवियण गणे रे लो॥ ६ 18/॥ हवे आवी धन्ना पासे शेठ तिवार जो, कुशलालाप पूडीने प्रमुदित मन कियो रे लो
॥ कहे स्वामी पधारो अम मंदिर महाराज जो, तुम मिलवाश्री लान्न घणो प्रत्नु अमर | थयो रे लो ॥ ७ ॥श्मनांखी शेठ ते धन्नाने ततखेव जो, अश्वारूढ करीने घर तेकी गया है।
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