Book Title: Dashashrut Skandh Sutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 405
________________ मुनिहर्षिणी टीका अ. १० भगवद्वन्दनार्थश्रेणिकस्यतप विचारः ३५७ कारणात् महाफलवत्वात् हे देवानुप्रिये ! वयं गच्छामः भगवत्समीपं व्रजामः श्रमणं भगवन्तं महावीरं वन्दामहे-रतुमः, नमस्यामा=नमामः, सत्कुम: विनयादिभिराद्रियामहे, सम्मानयासः भक्तिबहुमानः प्रसादयामः, कल्याण श्रेय:स्वरूपं, मोक्षदायित्वात् , मङ्गलं-मङ्गलस्वरूपं सर्वहितप्रापकत्वात् , दैवतं-धर्मदेवस्वरूपम् आराध्यत्वात् चत्यं-ज्ञानस्वरूपं सम्यग्दोषजनकत्वात् पर्युपास्महे= सर्वथा सस्यगाराधयामः एतत् भगवद्दर्शनादिकं णे=अस्माकम् इह भवेअस्मिन् जन्मनि परभवे परजन्मनि च हिताय कल्याणाय, सुखाय-आनन्दाय, क्षमाय% सवतरणलामयि, निःश्रेयसाय-मोक्षाय, यावत् अनुगामिकतायै भवपरम्परानुवन्धिसुखजनकाय भविष्यति । ततः तदनन्तरं सा चेल्लणा देवी श्रेणिकस्य प्रश्न पूछने और उनकी पर्युपासना - सेवा आदि करने से जो फल होता है उसका तो कहना ही क्या ? अतः हे देवोनुप्रिये ! अपन सगवान के पास चलें और श्रवण लगवान महावीर स्वामी को वन्दन (स्तुति) करें, नमस्कार करें, आदर करें, सम्मान-भक्तिपूर्वक बहुमान करें। वे लगवाल कल्याणं- मोक्ष देने वाले होने से कल्याणस्वरूप हैं, 'मङ्गलं'-सार्वहित की प्राप्ति कराने वाले होने से मङ्गलस्वरूप हैं, 'दैवतं' - भव्यों को आराधना करने योग्य होने से देवस्वरूप हैं, 'चैत्यं '-सम्यग्बोध देने वाले होने से ज्ञानस्वरूप हैं, उन भगवान् की पर्युपासना-सेवा करें । भगवान् के दर्शन आदि, हम लोगों के हिताय - इहलोक और परलोक में हित के लिए, सुखाय -सुख के लिए क्षमाय - भवसागर तैरने में सामथ्य के लिये, मोक्ष के लिये और यावत् सव-भव में सुख के लिये होगा । इस प्रकार चेल्लणा અભિગમન–તેમની સામા જવું, વદન-નમસ્કાર કરવા, પ્રશ્ન પૂછવા તથા તેમની પપાસના–સેવા આદિથી જે ફલ થાય છે તેનું તે કહેવું જ ? માટે હે દેવાનુપ્રિયે! આપણે ભગવાનની પાસે જઈએ અને શ્રમણે ભગવાન મહાવીર સ્વામીને વદન સ્તુતિ કરીએ, નમસ્કાર કરીએ, આદર કરીએ, સન્માન=ભકિતપૂર્વક બહુમાન કરીએ. ते लगवान कल्याण-भाक्ष देवापाडवाथी प्यास्प३५ छे मंगलं जितनी प्राप्ति ४ापाडापाथी भाग१३५ छ. देवतं-नव्याने माराधन ४२१॥ योग्य डापाथी ३१२५३५ छ. चैत्यं-सभ्य माध ठेवावाणा पाथी ज्ञान२१३५ छे. ते माવાનની પર્યાપાસના-સેવા કરીએ. ભગવાનનાં દર્શન આદિ આપણા લેકેનાં આ લોક તેમજ પરલોકનાં હિતને માટે, સુખને માટે સમય=ાવસાગર તરવામાં સામર્થ્ય માટે મેક્ષ માટે અને દરેક ભવભવમાં સુખ માટે છે. આ પ્રકારે ચેલણ શાણી પિતાના

Loading...

Page Navigation
1 ... 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497