Book Title: Dashashrut Skandh Sutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 412
________________ ३६६ - दशाश्रुतस्कन्धमत्रे महर्द्धिका-विशालसम्पत्तिमती, महामोरच्या महाऽऽनन्दमम्पन्ना या स्नाता कुनबलिकर्मा कृतकौतुक-मगलप्रायश्चित्ता यानत्सर्वाऽलझारविभूपिता सती श्रेणिकेन राज्ञा साई-सह, उदारान यापछदेन-मानुष्यकान मोगमागान भुञ्जाना विहरति । अम्माभिः साचीभिदेवलोक देव्यो न दृष्टाः । उग्र चेल्मणा मालाप्रत्यक्षा देवी-देवाऽङ्गनाऽस्ति । यदि चेत् अस्प-एतस्य सुचरिततपोनियमब्रह्मचर्यगुप्तिवासस्य-प्रागुक्तरूपस्य कल्याण शुमपदः फलत्तिविशेषः स्थान, चेत, तदा वयमपि-साध्व्योऽपि आगमिप्यति भविष्यकाले इमान् पनपान मानुज्यकान् भोगमोगान भुञ्जाना विहरेम । तदेतत्साध्वी साबीचिन्तनम् ।।मृ०१४|| तदनन्तरं च किमभवत् ? इति प्रदर्शयति-अजाति' इत्यादि । मूलम्--अजो-त्ति-समणे भगवं महावीरे ते वहवे निग्गंथे हुए विचारों का वर्णन करते हैं-'अहो णं चेल्लणा' इत्यादि । महारानी चेल्लणा देवी को देखकर माध्विया विचार करती है कि-आश्चर्य है कि यह चेल्लणा देवी महाऋद्धि. महादीप्तिशाली, और महासुखवाली है । यह स्नानकर, वलिकर्मकर, कौतुक, मंगल और प्रायश्चित्तकर सब प्रकार के अलङ्कारों से विभूपित होकर श्रेणिक राजा के साथ उत्तमोत्तम भौगों को भोगती हुई विचरण करती है । हमने देवलोक में देविया नहीं देखी हैं किन्तु यह साक्षात् देवी है। यदि हमारे इस सुचरित तप नियम और ब्रह्मचर्य का कोई कल्याणकारक विशेष फल हो तो हम भी आगामीकाल में इस प्रकार के उत्तम भोगों को 'मोगती हुई विचरण करें। यह साध्वियों का चिन्तनरूप निदान है ॥ मू० १४ ॥ ४२ छ-'अहो णं चेलणा' या " મહારાણું ચલણદેવીને જોઈને સાવિઓ વિચાર કરે છે કે-આશ્ચર્ય છે કે આ ચેલણદેવી માત્રાદ્ધિ મહાદીપ્તિશાલી અને મહાસુખવાળી છે. તે બલિકર્મ કરી કૌતુક મગલ તથા પ્રાયશ્ચિત્ત કરી, અને બધા પ્રકારના અલકારથી વિભૂષિત થઈને શ્રેણિક રાજાની સાથે ઉત્તમત્તમ ભેગને ભેગવતી વિચરણ કરે છે. અમે દેવલોકમાં દેવીઓ- નથી જોઈ. પણ આ સાક્ષાત્ દેવી છે જે અમારા આ સુચરિત તપ નિયમ અને બ્રહ્મચર્યનું કઈ કલ્યાણકારક વિશેષ ફલ હોય તે અમે પણ આગામી કાલમાં આ પ્રકારના ઉત્તમ ભેગેને ભગવતા વિચરણ કરીએ. આ સાવિઓનાં ચિંતનરૂપ निहान छे (सू० १४)

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