Book Title: Dashashrut Skandh Sutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 461
________________ मुनिहर्षिणी टीका अ. १० देवभवनिदान (६) वर्णनम् ४१५ यात् ? हन्त ! इति कोमलामन्त्रणे प्रतिशृणुयात् । केवलिप्रज्ञप्तं धर्म स च श्रद्दध्यात् प्रतीयात् रोचेत ? अयमर्थों न समर्थोऽस्ति ।मु० ४३ ॥ ____ पूर्वोक्तनिदानकर्तुरन्यतरस्मिन् कस्मिश्चिद्धमें श्रद्धा भवति न वे? त्याह-'अण्णत्थरुई' इत्यादि। - मूलम्-अण्णत्थरुई रुइ-मायाए से य भवइ। से जे इमे आरणिया आवसहिया गामंतिया कण्हुई रहस्सिया णो बहुसंजया णो बहुविरया स.वपाणभूय-जीव-सत्तेसु अप्पणा सच्चामोसाइं एवं विप्पडिवदंति-अहं ण हंतःवो अण्णे हंतव्वा, अहं ण अज्झावेय०वो, अण्णे अज्झावेयव्वा, अहं ण परियावेयब्वो, अण्णे परियावेयव्वा, अहं ण परिघेतवो, अण्णे परिघेतब्वा अहं ण उवद्दवेयन्वो, अण्णे उवद्दवेयत्वा। एवामेव इथिकामेहि मुच्छिया, गिद्धा, गढिया, अज्झोववण्णा जाव कालमासे कालं किच्चा अण्णतराई आसुराई किब्बिसियाई ठाणाई, उववत्तारो भवंति । तओ विमुच्चमाणा भुज्जो एल अब निदानकर्म के प्रभावका वर्णन करते हैं-'तस्स णं' इत्यादि। गौतम स्वामी पूछते हैं कि-हे भदन्त ! देवलोक से आये हुए एवं पुरुषपने को प्राप्त हुए निदानकर्म वाले को श्रमण अथवा माहन केवलिभाषित धर्म का उपदेश देते हैं ? भगवान्-हे गौतम ! देते हैं। गौतम-क्या वह उपदेश को सुन सकता है ? भगवान्-सुन सकता है। हे भदन्त ! वह केवलिभाषित धर्म में श्रद्धा, प्रतीति और रुचि कर सकता है ? हे गौतम ! नहीं कर सकता ॥ सू० ४३ ।। . व निहानमना प्रभावनु वर्णन ४२ छ -'तस्स णं' त्याह ગૌતમ સ્વામી પૂછે છે-હે ભદન્ત દેવકથી આવેલા અને પુરુષપણાને પ્રાપ્ત થયેલા નિદાનકર્મવાળાને શ્રમણ અથવા માહણ કેવલિભાવિત ધર્મને ઉપદેશ मापे छ ? भगवान गौतम ! माघे छ. गौतम-शुत, पहेशने सांमजी छ। ભગવાન-હા, સાભળી શકે છે. હે ભદન્ત ! તે કેવલિભાષિત ધર્મમાં શ્રદ્ધા પ્રતીતિ भने ३यि शथ छ3 गौतम ! नथी | Astt. (सू० ४३)

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