Book Title: Chobisi Puran
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Dulichand Parivar

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Page 12
________________ * चौवीस तीथकर पुराण - । और दूसरे स्वप्नसे आपको आयु एक माह वाकी रह गई मालूम होती है। ऐसा करनेसे तुम्हारे ऊपर उसका दृढ़ विश्वास हो जावेगा तब तुम उसे जो भी हितका मार्ग बतलाओगे उसे वह शीघ्र ही स्वीकार कर लेवेगा। इतना कह कर दोनों मुनिराज आकाश मार्गसे विहार कर गये और स्वयं बुद्ध मन्त्री भी हर्षित होते हुए अलकापुरीको लौट आये। वहां राजा महावल स्वयं बुद्धकी प्रतीक्षा कर रहे थे तो स्वयं बुद्धने शीघ्र ही जाकर उनके दोनों स्वप्नोंका फल जैसा कि मुनिराजने बतलाया था, कह सुनाया तथा समयोपयोगी और भी धार्मिक उपदेश दिया । मन्त्रीके कहनेसे महावलको दृढ़ निश्वय हो गया कि अब मेरी आयु सिर्फ एक माहकी वाकी रह गई है। वह समय आष्टान्हिक व्रतका था इसलिये उसने जिन मन्दिरमें आठ दिनतक खूब उत्सव किया। और शेप वाईस दिनका सन्यास धारण किया। उसे सन्यासी विधि स्वयं बुद्ध मन्त्री बतलाते थे। अन्तमें पंच नमस्कार मन्त्र का जाप करते हुए महायलने नश्वर मनुष्य शरीरका परित्याग कर ऐशान स्वर्गके श्रीप्रभ विमानमें देव पर्यायका लाभ किया। वहां उसका नाम ललितांग था । जब ललितांग देवने अवधिज्ञानसे अपने पूर्वभवका विचार किया तब उसने स्वयं बुद्धका अत्यन्त उपकार माना और अपने हृदय में उसके प्रति कृतज्ञता प्रकट की। पूर्वभवके संस्कारसे उसने वहांपर भी जिन पूजा आदि धार्मिक कार्यों में प्रमाद नहीं किया था। इस प्रकार ऐशान स्वर्गमें रवयं प्रभा, कनक प्रभा, कनक लता, विद्युल्लता आदि चार हजार देवियों के साथ अनेक प्रकारके सुख भोगते हुए ललितांग देवका समय बीतने लगा। ललितांगकी आयु अधिक थी इसलिये उसके जीवन में अल्प आयु वाली कितनी ही देवियां नष्ट हो जाती थी और उनके स्थानमें दूसरी देवियां उत्पन्न हो जाती थीं। इस तरह सुख भोगते हुए ललितांगकी आयु जब कुछ पल्योंकी शेष रह गई तब उसे एक स्वयं प्रभा नामकी देवी प्राप्त हुई थी। ललिनांगो स्वयं प्रभा सी सुन्दरी देवी जीवन भरन मिली थी इसलिये वह उसे बहुत चाहता था और वह भी ललितांगको बहुत अधिक चाहती थी। दोनों एक दूसरेपर अत्यन्त मोहित थे। परन्तु किसीके सब दिन एकसे नहीं होते धीरे धीरे ललितांग देवकी दो सागरकी आयु समाप्त होनेको आई

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