Book Title: Chintan ke Zarokhese Part 3
Author(s): Amarmuni
Publisher: Tansukhrai Daga Veerayatan

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Page 12
________________ श्री अमर मुनिजी का दिव्य विभूतित्व । दिव्यता एवं मानवता का संगम ही साधुता है। यही साधुता ज्ञान एवं ध्यान द्वारा शिष्य साधकों को प्रतीत होती ही है, बल्कि सामान्य पाठकों को भी इस साधुता की प्रतीति हर पृष्ठ में प्राप्त होती है। ऐसा है यह अपूर्व ग्रन्थ । जन को सज्जन बनाने में ही संस्कार होते हैं, सज्जन को साधक बनाने का नाम है दीक्षा । ये दोनों बातें आज भी सभी धर्मों में मौजूद है। इन्हीं के कारण व्यक्तिगत भाव शक्ति जिस प्रकार वृद्धिगत होती है, उसी प्रकार सामाजिक प्रभाव शक्ति की अनुभूति होती है। तब मानव - धर्म किस प्रकार प्रभावित होगा? इसलिए साधक सेवक बने यही सन्त - मुनियों का उपदेश है। परन्तु, वर्तमान समय में उतने मात्र से काम नहीं चलेगा। अत: साधक सेवकों को क्रान्तिकारी बनना होगा। यही आध्यात्मिक मानवता का आज का युग धर्म है। इसी युग - धर्म को पुकार-ललकार ही श्री अमर मुनिजी की अमर भारती है। किसी भी धर्मानुयायी, किसी भी वृत्ति के सत्प्रवृत्त पाठक को अमरमुनिजी की यह वाणी एक साथ ही भाविक, विकित्सक, साधक एवं सेवक बना पाएगी, ऐसी क्षमता इस ग्रन्थ की है। त्र्यं. शि. भारदे पुणे (महाराष्ट्र) [ ग्यारह ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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