Book Title: Chahdhala 1 Author(s): Daulatram Kasliwal Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad View full book textPage 5
________________ छहढ़ाला शब्दार्थ-अनन्त = जिसका अन्त न हो । चाहैं = चाहते हैं । दुःखते = दुःखों से । भयवन्त = डरते हैं | सीख = शिक्षा । करुणाधार = दया करके। __ अर्थ-तीन लोक में अनन्त जाव है, वे सब सुख चाहते हैं और दुःखों से डरते हैं इसीलिए दुःख को दूर करने वाली और सुख देने वाली शिक्षा गुरु (आचार्य) दयापूर्वक देते हैं । प्रश्न १–तीन भुवन में जीव कितने हैं ? वे क्या चाहते हैं ? उत्तर-तीन भुवन में अनन्त जीव हैं । वे सुख चाहते हैं । प्रश्न २–किससे डरते हैं ? उत्तर-दुःखों से डरते हैं। प्रश्न ३-गुरु कैसी शिक्षा देते हैं और कैसे देते हैं ? उत्तर--गुरु दुःख को दूर करने वाली और सुख देनेवाली शिक्षा देते हैं । गुरु (दिगम्बर) दया करके शिक्षा देते हैं। चेतावनी एवं संसार-भ्रमण का कारण ताहि सुनो भवि मन थिर आन, जो चाहो अपनो कल्याण । मोह महामद पियो अनादि, भूल आपको भरमत वादि ।।३।। शब्दार्थ---ताहि = उस गुरु-शिक्षा को । भवि = भव्य जीव । स्थिर आन = स्थिर होकर । चाहो = चाहते हो । मोह = मोहनीय कर्म । महामद = तेज शराब ! भरमत = भटकना । वादि = व्यर्थ । अर्थभव्यात्माओ ! यदि आप अपना कल्याण चाहते हो तो गुरुजनों की उस भला करने वाली शिक्षा को मन लगाकर सुनो । यह जीव अनादिकाल से मोहरूपी तेज शराब को पीकर, अपने आत्मस्वरूप को भूल कर बिना प्रयोजन भ्रमण कर रहा है । प्रश्न १-आप क्या चाहते हैं ? उत्तर-हम कल्याण चाहते हैं । प्रश्न २–कल्याण प्राप्ति के लिए क्या करना चाहिये ? उत्तर-सच्चे गुरुओं की शिक्षा को ध्यान से प्रीतिपूर्वक सुनना चाहिये। प्रश्न ३–भव्य किसे कहते हैं ?Page Navigation
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