Book Title: Bruhat Paryushana Nirnay
Author(s): Manisagar
Publisher: Jain Sangh

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Page 14
________________ [१४] नियोंको आलोयणालेनेकाकहाहै, और अभीश्रावणादिमहीने बढ़े.तब पांच महीनोंके दश पक्ष; १५० दिन वर्षाकालके होते हैं, उसमें आयंबिल, उपवास, नवकरवाली गुणने वगैरहसे जितने दिन धर्मकार्य होंगे, उतनेही दिन आलोयणाकी गिनतीमें आवेंगे,इसी तरहसे वर्षी और छमासीतपके दिनों में व ब्रह्मचर्य पालने वगैरह कार्योमेभी अधिक महीने के ३० दिन गिनती में आते हैं । इस हिसाबसे धर्मकार्यमें व कर्म बंधनके व्यवहारमै सूर्यके उदय अस्त (रात्रि दिनके) परिवर्तन के हिसाबसे और अंग्रेजी, मुसलमानी, पारसी, बंगलाकी तारिखोके हिसाबसेभी आषाढ चौमासीसे जब दो श्रावण होवें; तब भाद्रपद तक, या जब दो भाद्रपद होवे तब दूसरेभाद्रपद तक ८० दिन होतेहैं, उसके ५०दिन कहते हैं, और जब दो आसोज होवे तब कार्तिक तक१००दिनहोतेहैं, उसकेमी ७०दिन कहतेहैं. यहबात संसार व्यवहारके हिसाबसे, रात्रिदिनके जानेके (समयके प्रवाहके) हिसाबसे, धर्म शास्त्रोके हिसाबसे, ज्योतिषपंचांगकेहिसाबसे,राज्यनीतिके हिसाबसे, और धर्म-कर्मके अनादि नियमके हिसाबसेभी सर्वथा विरुद्धहै. और अन्य दर्शनियों के विद्वानोंके सामने जैनशासनको कलंक रूपहै. इसलिये मेहेरबानी करके बहुत समयकी गच्छ परंपराकी रूढीरूप प्रवाहके आग्रहको छोडकर जिनाशाका विचार करके यह अनुचित रीवाजको वगर बिलंबसे सुधारनेकी कौशिशकरें. इसके संबंध सर्व बातोका खुलासापूर्वक समाधान इस ग्रंथकी भूमिकाके ४७ प्रकरणों में व सुबोधिकादिककी २८ भूलोवाले लेखमें और इसग्रंथमें अ. च्छीतरहसे लिखने में आयाहै, उसको पूरेपूरा अवश्यवांचे और योग्य लगे उतना सुधाराकरें,पक्षपात झूठाआग्रह शास्त्रविरुद्ध बहुतलोगोंकी समुदाय व गुरुगच्छकी परंपरा हितकारीनहीं है, किंतु जिनाशाही हित कारीहै. परोपदेशकेलिये बहुत लोगबडे कुशल होते हैं, मगर वैसाही कार्य करनेवाले आत्मार्थीबहुतहीअल्पहोतेहैं, यहभी आपजानतेहीहै. और सर्वज्ञ शासनमें कर्मबंधन व धर्मकार्यसंबंधी समय २ का व श्वासोश्वासका हिसाब किया जाताहै, उसमें ८० दिनके ५० दिन और १०० दिनके ७० दिन कहनेवाले, यदि कसाई व व्यभिचारी वगैरह पापीप्राणियोंके कर्मबंधन और साधु मुनिमहाराजोके व ब्रह्मचारी वगैरह धर्मी प्राणियोंके कर्मक्षयकरने संबंधीभी ८० दिनके ५० दिन, व १००दिनके ७०दिन कहेगें, तबतो-सर्वश भगवान के प्रवचन की व धर्म-कर्मकी अनादिमर्यादा भंग करनेके दोषी ठहरेंगे, अथवा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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