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[१२] इसग्रन्थके उत्तरार्द्धके तीसरे खंडकी-जाहिर खबर.
१.इसप्रेथके उत्तरार्द्धके तीसरेखंडमें आगमादि अनेकप्राचीन शा. स्त्रानुसार,व चंद्रगच्छ,वडगच्छ, स्वरतरगच्छ,तपगच्छ,अंचलगच्छ, पायचंदगच्छादि सर्वगच्छोंके पूर्वाचार्योंके बनायेग्रंथानुसार श्रीवीर प्रभुके छ कल्याणक मान्यकरनेका अच्छी तरहसे सिद्ध करके पत. लाया है. और शांतिविजयजीने जैनपत्र'मैं, विनयविजयजीने 'सु. बोधिका में, कांतिविजयजी-अमरविजयजीने 'जैनसिद्धांत सामाचा. री' में, श्रीआत्मारामजीने 'जैन तत्त्वादर्श में, धर्मसागरजीने 'कल्पकिरणावली' 'प्रवचन परीक्षा' वगैरहमें जो जो छ कल्याणक नि. षेध संबंधी शंकायें की हैं. और शास्त्रकार महाराजोंके अभिप्रायको समझे बिनाही अधूरे२ पाठ लिखकर उनके खोटे २ अर्थ करके भोले जीवोंको उलटा मार्ग बतलानेकी कौशिश की है, उन सर्वबातोका समाधान सहित निर्णय इसमें लिखनेमें आया है।
२-और श्रीजिनेश्वर सूरिजी महाराजसे वस्तिवासी-सुविहित खरतर विरुदकी शुरुयात हुयीहै,इसलिये श्रीनवांगीवृत्तिकारक श्रीअभयदेवसूरिजी महाराज खरतर गच्छमें हुए हैं, यह बात प्राचीन शास्त्रानुसार तथा तपगच्छके पूर्वाचार्योके बनाये ग्रंथानुसार सिद्धकरके बतलायाहै । और कोई महाशय श्रीजिनदत्त सूरिजी महाराजसे संवत् १२०४में बरतरगच्छकी शुरुयातहोनेका कहते हैं, सोभी सर्वथा असत्य है. क्योंकि-इन महाराजसे सं.१२०४ में खरतरगच्छकी शुरुयात होनेका कोईभी कारण नहीं हुआ है. व्यर्थ झूठे आक्षेप करने बडी भूलहै, देखो-१२०४में तो खरतर गच्छकी तीसरी शाखा हुई है. इस बातका अच्छीतरहसे खुलासा इसग्रंथमें करनेमें आयाहै.
३-और जैनशास्त्रोकी यह आशा है, कि-यदि अपनी गच्छ परंपरामें ३-४ पेढीके आगेसेही शिथिलाचार चला आता होवे, तो क्रिया उद्धार करनेवाले दूसरेगच्छके अन्यशुद्ध संयमीके पासमें क्रिया उद्धार करें. अर्थात् - उनके शिष्य होकरके शुद्ध संयम पाले, उससे पहिलेकी शिथिलाचारकी अशुद्ध परंपरा छुटकर, क्रिया उद्धार करवानेवाले गुरुकीशुद्धपरंपरा मानीजावे. देखो जैसे-श्रीआत्माराम जीने ढूंढियोंके झूठेमतको छोडकर तपगच्छमें दीक्षाली है. इसलिये यद्यपि पहिलेढूंढियेथे तोभी उनकीपरंपरा ढूंढियोमैनहींलिखी जावे; किंतु तपगच्छमेही लिखीजावे. तथा कोई शिथिलाचारी यति अपने गुरु व गच्छको छोडकर अन्यगच्छवाले शुद्धसंयमीके पासमें क्रिया
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