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ब्रह्मविलासमे.
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है इनसो न नेह मोहि तोहीसों सनेह वन्यों, रामकी दुहाई कहूं
तेरे गेह रहिये ॥ १७॥ हूँ जीवन कितेक तापै सामा तू इतेकु कर, लक्ष कोटि जोर जोर
नैकु न अघातु है। चाहतु धराको धन आन सब भरों गेह, यो नए में जानें जनम सिरानो मोहि जात है। कालसम क्रूर जहां निशदिन है
घेरो करै, ताके बीच शशा जीव कोलों ठहरातु है। देखतु हैं नैन-, है निसों जगसबचल्योजात, तऊमूढचेतै नाहिलोभैललचातुहै॥१८॥
कहां हैं वे वीतराग जीते जिन रागद्वेप, कहां है वे चक्रवति । छहों खंडके धनी । कहां हैं वे वासुदेव युद्धके करैया वीर, कहां है 1 हैं वे कामदेव कामकीसी जे अनी ॥ कहां है वे राजा राम रावएनसे जीते जिनि, कहां हैं वे शालिभद्र लच्छि जाके थी घनी । ऐसे ए तो कईक कोटि है गये अनंती वेर, डेढ दिन तेरी वारी काहेको, करै मनी ॥ १९ ॥
सुनिरे सयाने नर कहा करै घरघर, तेरो जुशरीरघर घरीज्यों तरतु है । छिन २ छीजे आय जल जैसें घरी जाय, ताहूको इलाज है कछु उरहू धरतु है ॥ आदि जे सहे हैं ते तौ यादि कछु नाहि तोहै हि, आगे कहो कहा गति काहे उछरतु है। घरी एक देखो ख्याल घरीकी कहां है चाल,घरीघरी घरियाल शोर यों करतु है ॥२०॥
पाय नर देह कहो कीनों कहा काम तुम,रामारामा धनधन करई त विहातु है । कैक दिन कैक छिन रहि है शरीर यह, याके संग है ऐसे काज. करतु सुहातु है॥जानत है यह घर मरवेको नाहिं डर, है देख भ्रम भूलि मूढ फूलि मुसकात है । चेतरे अचेत पुनि चेतवेको र
नाहि और, आज कालि पीजरेसों पंछी उड जातु है ॥ २१ ॥ ए कर्मको करैया सो तो जानै नाहिं कैसेकर्म, भरममें अनादिही
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