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बिना मूर्तियोंको वहाँसे निकाले पढ़ना संभव नहीं रहा । मूर्तियें हटाई नहीं जा सकी अतः उनको छोड़ देना पड़ा । कई शिलालेखों में पीछे से रंग भरा गया है उसमें असावधानीके कारण बहुत से लेख व अंक अस्पष्ट व गलत हो गये। कई शिलालेखों को बड़ी मेहनत से साफ करना पड़ा गुलाल आदि भरकर अस्पष्ट अक्षरों को पढ़ने का प्रयत्न किया गया कभी कभी एक लेख के लेने में घंटों बीत गये फिर भी सन्तोष न होने से कई बार उन्हें पढ़ने को शुद्ध करने को जाना पड़ा। बहुत से लेख खोदने में ठीक नहीं खुदे या अशुद्ध खुदे हैं। उन संदिग्ध या अस्पष्ट लेखों को यथासंभव ठीक से लेने के लिये बड़ी माथापच्ची की गई। इस प्रकार वर्षों के श्रम से जो बन पड़ा है, पाठकों के सन्मख है। हम केवल ५ कक्षा तक पढ़े हुए हैं-न संस्कृतप्राकृत भाषा का ज्ञान व न पुरानी लिपियों का ज्ञान इन सारी समस्याओं को हमें अपने श्रम व अनुभव से सुलझाने में कितना श्रम उठाना पड़ा है यह भुक्तभोगी ही जान सकता है । कार्य करने की प्रबल जिज्ञासा सच्ची लगन और श्रम से दुसाध्य काम भी सुसाध्य बन जाते हैं इसका थोड़ा परिचय देने के लिये ही यहां कुछ लिखा गया है।
प्रस्तुत लेख संग्रह में है वी, १० वीं शताब्दी से लेकर आज तक के करीब ११ सौ वर्षों के लगभग ३००० लेख हैं। बीकानेर में सबसे प्राचीन मूर्ति श्री चिन्तामणिजी के मंदिर में ध्यानस्थ धातु मूर्ति है जो गुप्तकाल की मालूम देती है। इसके बाद सिरोही से सं० १६३३ में तुरसमखान द्वारा लूटी गई धातू मूर्तियों में जिसको अकबर के खजाने में से सं० १६३६ में मंत्री कर्मचन्दजी बच्छावत को प्रेरणासे लाकर चिन्तामणिजी के भूमिग्रह में रखी गई थी। उनमें से ३-४ धातु मूर्तियाँ ह वी, १० वीं शताब्दी की लगती है जिनमें से दो में लेख भी है पर उनमें संवत् का उल्लेख नहीं लिपि से ही उनका समय निर्णय किया जा सकता है। संवतोल्लेखवाली प्रतिमा ११ वी शताब्दी से मिली है १२ वीं शताब्दी के कुछ श्वेत पाषाण के परिकर व मूर्तियाँ जांगलू आदि से बीकानेर में लाई गई जो चिंतामणिजी व डागों के महावीरजी के मन्दिर में स्थापित है।
बीकानेर राज्य में ११ वीं शताब्दी की प्रतिमाएं रिणी ( तारानगर ) में मिली है एक शिलालेख नौहर में है और झमकी एक धातु प्रतिमा सं० १०२१ की है। १२ वी १३ वीं शताब्दी के बाद की तो पर्याप्त मूर्तियां मिली हैं। १४ वीं से १६ वीं में धातु मूर्तियां बहुत ही अधिक बनी। १५ वीं शती से पाषाण प्रतिमा भी पर्याप्त संख्या में मिलने लगती हैं। .
. इस लेख संग्रहमें एक विशेष महत्त्वकी बात यह है कि इसमें श्मसानोंके लेख भी खूब लिये गये हैं। बीकानेर के दादाजी आदि के सैकड़ों चरणपादुकाओं व मूर्तियों के लेख अनेकों यति मुनि साध्वियों के स्वर्गवास काल की निश्चित सूचना देते हैं। जिनकी जानकारी के लिये अन्य कोई साधन नहीं है इसी प्रकार जैन सतियों के लेख तो अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण है ! संभवतः अभी तक ओसवाल समाज के सती स्मारकों के लेखों के संग्रह का यह पहला और ठोस कदम है। जिसके लिये सारे श्मसान छान डाले गये हैं।
"Aho Shrut.Gyanam"