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पर्याप्त लेख हैं। ताम्रशासनों की भाषा राजस्थानी है। राजस्थानी भाषाके प्रस्तर लेखों में श्री पहावीर स्वामीके मन्दिर का लेख (नं० १३१३ ) सर्व प्राचीन है। वह पद्यानुकारी है पर पाषाणभुरभुरा होने से नष्ट प्रायः हो चुका है। संग्रहीत अभिलेखों का विभिन्न ऐतिहासिक महत्त्व है। लेखांक १५७२-७३ में मन्दिर के लिए भूमि (गजगत सहित) प्रदान करने का उल्लेख है। उपाश्रय लेखों में नाथूसर के उपाश्रय का लेख (नं० २५५५ ) हस्तलिखितपत्र से उद्धृत किया गया है। पुस्तक पढवेष्टन ( कमलो परिकर ) का एक लेख बड़े उपाश्रय में मिला है जो सूचिका द्वारा अंकित किया गया है। वस्त्र पर सूचिका द्वारा कढ़ा हुआ कोई लेख अद्यावधि प्रकाश में नहीं आनेसे नमूने के तौर पर एक लेख यहाँ दिया जा रहा है।
१ श्री गौतम स्वामिने नमः ।। संवत् १७४० वर्ष शाके १६०६ प्रवर्त्तमाने । आश्विन मासे कृष्ण पक्षे दशमी तिथौ वृहस्पतिवारे ॥
२ महाराजाधिराज महाराजा श्री ४ श्री अनूपसिंहजी विजय राज्ये ।। श्री नवहर नगर मध्ये ॥ श्री वृहत् खरतर गच्छे ।। युग प्रधान श्रीश्रीश्री जिनरत्नसूरि सूरीश्वरान् ।।
३ तत्प विजयमान युगप्रधान श्रीश्रीश्रीश्रीश्री जिनचन्द्रसूरीश्वराणां विजयराज्ये ।। श्री नवहर वास्तव्य सर्व श्राद्धन कमली परिकरः ।।
४ वाचनाचार्य श्री सोमहर्ष गणिनां प्रदत्तः स्वपुण्यहेतवे ॥ श्री फत्तेपुर मध्ये कृतोयं कमली परिकरः श्री जिनकुशलसूरि प्रसादात ! दर्जी मानसिंहेन कृतोयम् ।। श्रीरस्तुः ।।
इस लेख संग्रहको इस रूपमें तैयार व प्रकाशित करने में अनेक व्यक्तियोंका सहयोग मिला है। जिनमें से कई तो अपने आत्मीय ही हैं। उनको धन्यवाद देना--- उनके सहयोग के महत्व को कम करना होगा!
स्वपूरणचंद्रजी नाहर जिनके सम्पर्क व प्रेरणासे हमें संग्रह करने और कलापूर्ण वस्तुओं के मूल्यांकन और संग्रहकी महत् प्रेरणा मिली है। उनका पुण्यस्मरण ही इस प्रसंग पर हमें गद्गद् कर देता है । हम जब भी उनके यहाँ जाते वे बड़ी आत्मीयताके साथ हमें अपने संग्रह को दिखाते, लेखों को पढ़ने के लिये देते और कुछ न कुछ कार्य करने की प्रेरणा करते ही रहते । सचमुच में इस लेख संग्रह में उनकी परोक्ष प्रेरणा ही प्रधान रही है। उनके लेख संग्रह को देखकर ही हमारे हृदय में यह कार्य करने की प्रेरणा जगी। इसीलिये हम उनकी पुण्यस्मृति में इस ग्रन्थ को समर्पित कर अपने को कृतकृत्य अनुभव करते हैं।
मन्दिरों के व्यवस्थापकों व पुजारियों आदि का भी इस संग्रहमें सहयोग रहा है। लेखों के लेने में अनेकव्यक्तियों ने यत्किचित भाग लिया है। जैसे चिंतामणि मन्दिर के गर्भगृहस्थ मूर्तियों के लेखोंके लेने में स्व० हरिसागरसूरिजी, उ० कवीन्द्रसागरजी, महो० विनयसागरजी, श्रीताजमलजी बोथरा, रूपचन्दजी सुराना आदि ने साथ दिया है। अन्यथा इतने थोड़े दिनों में इतने लेखों को लेना कठिन होता। सती स्मारकों के लेखों के लेने में हमारे भ्राता मेघराजजी नाहटा का भी सहयोग उल्लेखनीय रहा है। कई दिनों तक बड़ी लगन के साथ श्मसानों को छानने में उन्होंने कोई कमी नहीं रखी। नौहर व भादरा के लेख भी उन्हीके लाये हुए हैं।
"Aho Shrut.Gyanam"