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राग रामकली आदिपुरुष मेरी आस भरो जी। अवगुन मेरे माफ करो जी। दीनदयाल विरद बिसरो जी, कै विनती मोरी श्रवण धरो जी॥आदि.॥ काल अनादि वस्यो जगमाहीं, तुमसे जगपति जाने नाहीं। पाँय न पूजे अंतरजामी, यह अपराध क्षमाकर स्वामी ॥१॥ आदि.॥ भक्तिप्रसाद परम पद है है, बँधी बंधदशा मिटि जैहै। तब न करो तेरी फिर पूजा, यह अपराध छमो प्रभु दूजा ॥२॥ आदि.॥ 'भूधर' दोष किया बख्सावै, अरु आगैको लारै लावै। देखो सेवक की ढिठवाई, गरुवे साहिबसौं बनियाई॥३॥ आदि.॥
हे आदिपुरुष ! ऐरी आशा की पर्ति करो. मेरे अरमणों की ओर भान न दो, उन्हें क्षमा कर दो। हे दीनदयाल ! दीनों पर दया करनेवाले ! यह आपका गुण है, विशेषता है। या तो मेरी विनती सुनो या अपने इस विरद (विशेषता) को, गुण को भूल जाओ, छोड़ दो। अनादिकाल से इस जगत में भ्रमण करता चला आ रहा हूँ पर आप-जैसे जगत्पति को मैं अब तक नहीं जान सका। हे सर्वज्ञ 1 इसलिए मैंने कभी आपकी वन्दना-स्तुति नहीं की। यह मेरा अपराध हुआ। हे प्रभु! इसके लिए मुझे क्षमा प्रदान करें।
__ आपकी भक्ति के परिणामस्वरूप (फलरूप) परम पद मिलता है, मुक्ति की प्राप्ति होती है और कर्म-बन्ध की दशा (जो कर्म बंधे हुए हैं) भी मिट जाती है। जब भविष्य में मेरे सब कर्म मिट जायेंगे तो मैं फिर आपकी पूजा नहीं करूंगा क्योंकि मैं भी तो मुक्त हो जाऊँगा, तब वह मेरा दूसरा अपराध होगा।
भूधरदास प्रार्थना करते हैं कि पूर्व में मेरे द्वारा किये गये दोषों को, गल्तियों को बख्श दो, माफ कर दो (अर्थात् मेरे अतीत को भूल जाएं) और भविष्य को साथ लें अर्थात् भविष्य पर ध्यान करें। देखिए स्वामी - मुझ सेवक का यह कैसा ढीठपना है कि आप सरीखे महान स्वामी से भी मैं यह बनियागिरी की बात कर रहा हूँ।
भूधर भजन सौरभ