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नाश करनेवाले हो और सुमति के आधार हो, मुझे दीन जानकर ही मुझ पर दया करो।
हे चौबीसों जिनेश! आपको मनुष्य, देव आदि सभी आकर शीश झुकाते हैं। मैं भी आपकी शरण में आया हूँ । हाथ जोड़कर शीश नमाता हूँ। तुम तारनेवाले हो, मुझे भी इस भवसागर से पार उतारो। मैं शक्तिहीन हूँ, निर्धन हूँ, दीन हूँ। आप दयालु हैं, मेरे सर्व कार्य सिद्ध कीजिए।
हे ! आरतुल महिमा सार हैं, महिमाधारी हैं। आपकी महिमागुणावली का पार इन्द्र भी नहीं पा सकते, तब मेरी सामर्थ्य कहाँ! भूधरदास कहते हैं, मैं लोक-हास्य का भय तजकर, भक्तिवश ही आपका यशगान करने को प्रेरित हुआ हूँ।
भूधर भजन सौरभ