Book Title: Bhudhar Bhajan Saurabh
Author(s): Tarachand Jain
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 59
________________ (३८) राग धनासारी शेष सुरेश नरेश रटें तोहि, पार न कोई पाव जू॥टेक॥ काटै नपत व्योम विलसतसौ, को तारे गिन लावै जू॥१॥ शेष.॥ कौन सुजान मेघबूंदन की, संख्या समुझि सुनावै जू॥२॥ शेष,। 'भूधर' सुजस गीत संपूरन, गनपति भी नहि गाथै जू।।३॥ शेष.॥ हे भगवन ! सर, नर. टा भात् दे, मनु आदि पानी देरा नाम रटते हैं, पर तेरे गुणों का कोई भी पार नहीं पा सकता। जो आकाशगामी होकर गगन को पार करते हैं, व्योम में स्वच्छन्द विचरण करते हैं वे आकाशगामी भी क्या समस्त तारागण की गिनती कर सकते हैं? कोई भी सत्पुरुष क्या बरसते मेघ की बूंदों की गिनती कर सकते हैं? भूधरदास कहते हैं कि स्वयं गणधर गणपति भी आपके सुयश का सम्पूर्ण गुणगान कर सकने में असमर्थ हैं। भूधर भजन सौरभ

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