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राग आसावरी चरखा चलता नाहीं (रे) चरखा हुआ पुराना (वे)। पग खूटे दो हालन लागे, उर मदरा खखराना। छीदी हुई पांखड़ी पांसू, फिरै नहीं मनमाना॥१॥ रसना तकलीने बल खाया, “सो अब कैसै खूटै। शबद-सूत सूधा नहिं निकसे, घड़ी-घड़ी पल-पल टूटै ॥२॥ आयु मालका नहीं भरोसा, अंग चलाचल सारे। सेज इलाज मरम्मत चाहे, वैद बाढ़ई हारे ॥३॥ नया चरखला रंगा-चंगा, सबका चित्त चुरावै। पलटा वरन गये गुन अगले, अब देखें नहिं भावै ॥४॥ मोटा मही कातकर भाई!, कर अपना सुरझेरा। अंत आग में ईंधन होगा, 'भूधर' समझ सवेरा ॥५॥
चरखा अर्थात् देह अब चलती नहीं है, चरखा (यह देह/शरीर) पुराना हो गया है, अर्थात् बुढ़ापा आ गया है। चरखे के दोनों डंडे जिनके बीच में चरखें का पहिया होता है, अब हिलने लगे हैं, अर्थात् इस देह के दोनों पाँव अब शिथिल हो गए हैं, डगमगाने लगे हैं। चरखा पुराना हो जाने से उसकी कीली भी घिस गई है, अब वह चलने पर आवाज करता है, उसी प्रकार देह में जमे कफ की खंखार होने लगी है । चरखे की पाँखडिया ढीली हो गई हैं, चरखे का स्वचालन कम हो गया है अर्थात् देह का घूमना-फिरना कम हो गया है। ___ इस रसना-जीभरूपी तकली में टेढ़ापन, ऐंठन, आ गई अर्थात् जीभ सूखने लगी है, अब वह निर्बलता कैसे कम हो? शब्दरूपी सूत सीधा नहीं निकलता, बुढ़ापे के कारण जबान तुतलाने लगती है, अस्पष्ट हो जाती है, बीच-बीच में अवरुद्ध हो जाती है, जैसे चरखे का सूत टूटता जाता है । देह की जीर्णता के कारण
भूधर भजन सौरभ