Book Title: Bhudhar Bhajan Saurabh
Author(s): Tarachand Jain
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 117
________________ पुस्तक के पन्ने पढ़कर, घर-घर जाकर कथावाचन करे, अगर उसको पढ़कर अपने ब्रह्म को, अपनी आत्मा को नहीं पहचान पाया तो ब्राह्मण हो कर भी क्या हुआ? सारे नशे .. गांजा, अफीम, भाँग, शराब, पोश्त आदि का सेवन कर मस्त हुआ, पर यदि हृदय से प्रेम-प्रोति का व्यवहार न कर सका, प्रेम-प्रीति में मस्त न हो सका तो नशेवान होकर भी क्या हुआ? शतरंज, चौपड़, गंजफा, सारे खेल खेल लिए, मगर हृदय से आत्म-प्रेम की बाजी न खेली तो उसके खिलाड़ी/जुवारी होने से भी क्या हुआ ? भूधरदास कहते हैं कि हे श्रोतागण ! मैंने यह विनती बनाई है सो सुनो, यदि गुरु का वचन नहीं माना तो सुननेवाला होकर भी क्या हुआ? । १०६ भूधर भजन सौरभ

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