Book Title: Bhudhar Bhajan Saurabh
Author(s): Tarachand Jain
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 127
________________ हे सखी ! मैं क्या करूँ? कहाँ जाऊँ ? किसको जाकर अपना दुखड़ा कहूँ? चिदानन्द आत्मा की वधू सुमति अपने प्रिय की विमुखता के कारण दुःखी होकर, विरह की पीड़ा अपनी सखियों के आगे अपने मुख से इस प्रकार व्यक्त कर रही प्रियतम के बिना कितने दिन बीत गए, कब तक धीरज रखें! अपने घर को छोड़कर वे पर-घर में भटक रहे हैं, यह कथा कैसी विपत्ति से भरी हुई है ! ___ कहने को तो सब यह ही कहते हैं कि वे प्रियतम हैं और हम हैं उनकी नारी परन्तु वे स्वप्न में भी हमसे नहीं बोलते, तो बताओ हम से अधिक दुःखी कौन है? उस कुमतिरूपी कुलटा का नाश हो, जिसने हमारे प्रियतम को भटका रखा है । हमसे दूर रहकर उसके रंग-ढंग ही विचित्र हैं, परन्तु वे नासमझ नहीं हैं। ___हम दुलीत. सुगठित सुदौल न मुटर हैं. फिर भी प्रियतम हमसे प्रेम क्यों नहीं करते! कुलीन/सद्गुणसम्पन्न हमें देखकर भी उनके चित्त में जरा भी करुणाभाव जाग्रत नहीं होता । उस दासी कुमति से ही वे अपने को जोड़े रहते हैं । अपने गुणों को अपने द्वारा ही प्रशंसा किया जाना (स्वयं ही प्रशंसा करना) शोभा नहीं देता। ऐ सखी! वीर, चतुर, इस आत्मा की चतुराई को जरा देखो। मैं आज ही जिनेन्द्र भगवान से प्रार्थना करती हूँ कि वे हमारे प्रियतम को समझावें। यदि वे घर आ गए तो मानो याचक को उसकी मनचाही भीख मिल गई। ___इस प्रकार प्रियतम से अलग दीन सुमति वधू दिन-रात अपनी निराशा में ही झूल रही है। भूधरदास कहते हैं.कि प्रियतम की प्रसत्रता के बिना स्त्री का घर बस नहीं पाता। हाँडे = भटके । लोरें = प्रेम करें। ११६ भूधर भजन सौरभ

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