Book Title: Bhudhar Bhajan Saurabh
Author(s): Tarachand Jain
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 118
________________ (७७) राग विहाग जगत जन जूवा हारि चले॥टेक ।। काम कुटिल संग बाजी मांडी, उन करि कपट छले ॥ जगत. चार कषायमयी जहं चौपरि, पासे जोग रले। इस सरवस उत कामिनी कौड़ी, इह विधि झटक चले॥१॥जगत.॥ कूर खिलार विचार न कीन्हों, है है ख्वार भले। बिना विवेक मनोरथ काके, 'भूधर' सफल फले ॥२॥ जगत.॥ जगत के लोग जूवा हारकर चले गये । काम (कामनाओं) व कुटिलता के साथ बाजी खेली, उनके द्वारा छले गये और बाजी हार गये। नौपाड़ की गार पट्टियाँ कार के समान हैं, पासे योग के समान हैं। एक ओर तो सर्वस्व है दूसरी ओर कामिनीरूपी कौड़ी है, उस कोड़ी से झटके गये अर्थात् छले गये। ___ ये झूठे खेल खेलते समय तो विचार नहीं करते, अपनी बरबादी कर लेते हैं और फिर दु:खी होते हैं। भूधरदास कहते हैं कि बिना विवेक किये गये कार्य से किसका मनोरथ सफल हुआ है? अर्थात् किसी का नहीं हुआ। योग - मन-वचन और काय की प्रवृत्ति ! यह प्रवृत्ति बदलती रहती है जैसे चौपड़ के पासे लुकते हुए बदलते रहते हैं। भूधर भजन सौरभ १०७

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