Book Title: Bhudhar Bhajan Saurabh
Author(s): Tarachand Jain
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 121
________________ (८०) राग कल्याण सुनि सुजान! पांचों रिपु वश करि, सुहित करन असमर्थ अवश करि। जैसे जड़ खखारको कीड़ा, सुहित सम्हाल सबै नहिं फंस करि। पांचन को मुखिया मन चंचल, पहले ताहि पकर, रस कस करि। समझ देखि नायक के जीतै, जै है भाजि सहज सब लसकरि॥१॥ इंद्रियलीन जनम सब खोयो, बाकी चल्या जात है खस करि । 'भूधर' सीख मान सतगुरुकी, इनसों प्रीति तोरि अब वश करि ॥२॥ हे ज्ञानी सुनो ! अपना हित करने के लिए पाँचों इन्द्रियरूपी शत्रुओं को शक्तिहीन-बलहीन कर अपने वश में करो। जैसे खखार अर्थात् थूके गए कफ में फंसा हुआ कीड़ा अपने को असहाय्य पाता है, अपने हित को नहीं संभाल पाता वैसे ही इन इन्द्रिय-विषयों में फंसे होने के कारण जीव अपना हित करने में असमर्थ होता है, बेबस हो जाता हैं। इन पाँचों इंद्रियों का मुखिया यह चंचल मन है। सबसे पहले उसे पकड़, वश में कर फिर रस अर्थात् स्वाद को/जीभ को कस ( वश में कर)। अपने नायक को जीत लिया ( हारा हुआ) जानकर इसकी सारी सेना सहज ही हार स्वीकार कर लेगी, कमज़ोर पड़ जायेगी, भाग जायेगी। इन्द्रियों के वशीभूत होकर सास जन्म वृथा हो खो दिया, और शेष जीवन भी इस ही भाँति सरकता जा रहा है, बीतता जा रहा है। भूधरदास कहते हैं तू सत्गुरु की सीख को मान और इन इन्द्रिय-विषयों से प्रीति तोड़कर इनको अपने वश में करले। खसकरि = खिसकना, सरकना। भूधर भजन सौरभ

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