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दुःखों से भयभीत हूँ, इससे मोक्ष की प्राप्ति की इच्छा उत्पन्न हुई है। मुझ दुखिया पर दया करके मुझे संसार के बंधन से मुक्त कीजिए। मैं इस संसार के कठिन व गहरे कूप में पड़ा हुआ हूँ, मुझे बाहर निकालो। आप ही पापियों का उद्धार करनेवाले हैं, इसलिए मैं बार-बार आपकी स्तुति करता हूँ, आपका स्मरण करता हूँ। आप परम दयालु हैं । आप अशरण (जिसको कोई शरण नहीं है) उसके लिए भी सहारा हैं, आधार हैं । ये दुष्ट कर्म मुझे दुःख दे रहे हैं, इसलिए मैं आपसे पुकार कर रहा हूँ। एक गाँव का स्वामी/राजा भी अपने किसी प्रजाजन की दुःखी देखकर दया करता है तो आप तो त्रिलोक (तीनलोक) के स्वामी हैं, आप मुझे कर्मबंधन से छुटकारा क्यों नहीं दिला सकते? हृदय से संसार का ताप तब ही मिटेगा जब अन्तर को शीतल, दयारूपी अमृत से धोकर/शुद्धकर उस शान्त पवित्र हृदय में आपको आसीन करूँ, विराजमान करूँ, आपके दोनों चरणकमलों को विराजित करूँ। __ आपसे यही विनती है कि मेरे संसार का निवारण करो, मैं दुःखों से त्रस्त हूँ, दग्ध हूँ, दुःखी हूँ, आचार्य पद्मनंदि के करुणाष्टक का आश्रय लेकर में अपने लाभ के लिए आपसे अर्ज करता हूँ। मैं भूधरदास आपकी शरण में आया हूँ, हे जगत्पति ! अब मेरी लाज रखिए, मुझ पर करुणा कीजिए।
भूधर भजन सौरभ