Book Title: Bhudhar Bhajan Saurabh
Author(s): Tarachand Jain
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 106
________________ जीवदया व्रत तरु बड़ो, पालो पालो बड़भाग॥टेक ।। कीड़ी कुंजर कुंथुवा, जेते जग-जन्त। आप सरीखे देखिये, करिये नहिं भन्त ॥१॥ जीवदया.॥ जैसे अपने हीयडे, प्यारे निज प्रान। त्यों सबहीको लाड़ितो, लिहौ साद जान ॥ २ ॥ जीवदया.॥ फांस चुभै टुक देहम, कछु नाहिं सुहाय। त्यों परदुखकी वेदना, समझो मन लाय॥३॥ जीवदया.॥ मन वचसौं अर कायसौं, करिये परकाज। किसहीकों न सताइये, सिखवै रिखिराज ॥४॥जीवदया.॥ करुना जगकी मायड़ी, धीजै सब कोय। धिग! धिग! निरदय भावना, कंपैं जिय जोय ।। ५ ॥ जीवदया.॥ सब दंसण सब लोयमें, सब कालमँझार। यह करनी बहु शंसिये, ऐसो गुणसार ॥६॥जीवदया.॥ निरदै नर भी संस्तुवै, निंदै कोइ नाहिं । पालैं विरले साहसी, धनि वे जगमांहि ।। ७॥ जीवदया.॥ पर सुखसौं सुख होय, पर-पीड़ासौं पीर । 'भूधर' जो चित्त चाहिये, सोई कर वीर!॥८॥ जीवदया.॥ हे भाग्यवान, पुण्यवान जीवो ! जीवों के प्रति दया करना एक विशाल वृक्ष की भाँति है, उसका पालन करना । चींटी, हाथी, कुंथु आदि जगत के जितने भी प्राणी हैं, उन्हें आप अपने जैसा प्राणी ही जानिए, उनमें भेद-अन्तर मत कीजिए। जैसे आपको अपने प्राण प्यारे लगते हैं वैसे ही सबको अपने अपने प्राण प्यारे हैं-ऐसा तू निश्चय से जान। भूधर भजन सौरभ

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