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श्रीपुन्यारत्रग्रंथमें, सुनि मानी तारे सो सुनि लेहु, सीख सुनि प्रानी रे!॥१३॥ सात-विसन सेवन हठी, सुनि प्रानी रे! अधम अंजना चोर, सीख सुनि प्रानी रे! सरधा करते मंत्रकी, सुनि प्रानी रे! सीझी विद्या जोर, सीख सुनि प्रानी रे!।। १४ ।। जीवक सेठ समोधियो, सुनि प्रानी रे! पापाचारी स्वान, सीख सुनि प्रानी रे! मंत्र प्रतापैं पाइयो, सुनि प्रानी रे! सुंदर सुरग विमान, सीख सुनि प्रानी रे!॥१५॥ आगैं, सीझे सीझि है, सुनि प्रानी रे! अब सीझैं निरधार, सीख सुनि प्रानी रे! तिनके नाम बखानते, सुनि प्रानी रे! कोई न पावै पार, सीख सुनि प्रानी रे!॥१६॥ बैठत चिंतै सोवतै, सुनि प्रानी रे! आदि अंतलौं धीर, सीख सुनि प्रानी रे! इस अपराजित मंत्रको, सुनि प्रानी रे! मति विसरै हो वीर, सीख सुनि प्रानी रे!॥१७॥ सकल लोक सब कालमें, सुनि प्रानी रे! सरवागममें सार, सीख सुनि प्रानी रे! 'भूधर' कबहुं न भूलि है, सुनि प्रानी रे! मंत्रराज मन धार, सीख सुनि प्रानी रे ! ॥१८॥
श्री गुरु यह शिक्षा देते हैं - अरे प्राणी ! तू सुन । तू णमोकार मंत्र का स्मरण कर, यह लोक में सर्वोपरि है, मंगल है व उत्तम है। जिनको किसी की शरण नहीं है, उन सबका यही एक आधार है, सहारा है, आलंबन है।
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भूधर भजन सौरभ