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जलभरे सरोवर भी जब सूख जायें, नदियाँ भी सूख जायें, रास्ते में राहगीर भी न चलें, सूर्य की प्रचण्डता के कारण तीव्र गरमी हो, उस समय भी पर्वत के शिखर पर कायोत्सर्ग पुद्रा में खड़े मुनि तप में लीन रहते हैं, वे साधु मेरे हृदय में निवास करें, मेरे पापों की पीड़ा का हरण करें। __घनघोर घटाएँ छा रही हों, घने बादल गरज रहे हों, वर्षा ऋतु में तीव्र वर्षा हो रही हो, चारों ओर बिजलियाँ कौंध रही हों और बरसात को ठंडी हवाएँ बह रही हों, उस समय वृक्ष के नीचे एकान्त में जो निश्चल मुद्रा में बैठते हों वे साधु मेरे हृदय में निवास करें, मेरे पापों की पीड़ा का हरण करें।
जब सर्दी में पाला पड़ने के कारण जंगल में सभी जगह दाहा (शीतदाह) लग गया हो, तालाबों में पानी जम गया हो, सर्दी से सबकी काया काँप रही हो, तब खुले मैदान में अथवा नदी के किनारे दिगम्बर मुद्रा में तप में लीन रहनेवाले साधु मेरे हृदय में निवास करें, मेरे पापों का हरण करें।
भूधरदास कर (हाथ) जोड़कर विनती करते हैं कि कब ऐसे मुनिराज के दर्शनों का सौभाग्य मिले। मेरे मन की आशा पूरी हो, मेरे सारे कार्य सिद्ध हों। इस संसाररूपी अनजान परदेश में बिना किसी कारण के जो सहज ही ( भाई, हितैषी) वीर हैं वे साधु मेरे हृदय में निवास करें, मेरे पापों का हरण करें।
उर = मन । सारिखी = समान, बराबर । तरंगनि तोय = नदी का जल। याटै - रास्ते से, रास्ते में। बटोही = मुसाफिर । पावसकाल = बरसात में । ब्याल = पवन । तरु हेर = वृक्ष के नीचे।
भूधर भजम सौरभ