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तूने मनुष्य भव पाया है, ऐसी साख लेकर तू इस संसार में व्यापार हेतु आया है। जो चतुर व्यक्ति हैं, वे तो अपने साथ शुद्धि अथवा शुभ कर्म की कमाई करके चले गए, परन्तु जो मूर्ख हैं, वे जो कुछ लाए थे वह भी गँवा गये।
जिन्होंने तृष्णा को त्याग करके तप किया, उन्होंने अपना हित देखा और पाया। परन्तु जो अज्ञानी भोगों में ही मग्न रहे, उन्होंने अपना सर्वस्व/सब-कुछ खो दिया। ___ काम की पीड़ा से व्यथित यह जीव भोगों को उसी प्रकार भला जान रहा है जैसे खुजली का रोगी खुजाने में ही आनन्द की अनुभूति करता है किन्तु परिणाम में लहु-लुहान होकर दु:खी होता है।
रागरूपी नागिन ने पूरे बल से इस जगत को डस लिया है और सारे ही जीव उस विष-मोह की लहर के प्रभाव से बेसुध हो गए हैं; गुरु उपकारी हैं, वे दु:ख को देखकर जहर को दूर करने के लिए उपदेश देते हैं, मंत्र-पाठ करते हैं।
गुरु ही माता है, गुरु ही पिता है, गुरु ही भाई व साथी हैं । भूधरदास कहते हैं कि इस संसार में गुरु ही एकमात्र शरण हैं, वे ही सहायक हैं।
बिगोया = खोया । उरणनी .. सपिनी ।
भूधर भजन सौरभ