Book Title: Bhudhar Bhajan Saurabh
Author(s): Tarachand Jain
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 35
________________ के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है, वहाँ खार की नदी यानी तीक्ष्ण नदी बहती है। फिर असुर-नारकी अपना वैर विचारकर संहार करते हैं। निर्दय नारकी मिलकर बाँधकर भौति भाँति की यातनाएँ देते हैं। फिर मनुष्य जन्म पाया तन्न माता के गर्भ में रहा। जनम होते ही मैं बार-बार बहुत रोया। यौवन में विरह व वियोग की अनुभूति व पीड़ा हुई? अनेक प्रकार के भोग-साधन किए पर, फिर वृद्धपने की वेदना भोगनी पड़ी। फिर देव हुआ, देवांगनाओं में रमता रहा और पराई संपत्ति-वैभव को देखकर ईर्ष्यावश दुःखी होता रहा। फिर माला मुरझा गई यानी मृत्युकाल समीप आ गया। शह लानका मन में दुःखी हुआ पर आयु पूरी हो गई और द:खी होकर मरा। इस प्रकार भवभ्रमण के बहुतेरे दुःख भोगे, जिनको कहा नहीं जा सकता, वे अपार हैं । मिथ्यात्व के मद में डूब मैं नित ही सुख की कामना करता रहा। पर सुख के दाता और जगत को दुख से मुक्त करानेवाले आपको मैंने नहीं जाना, नहीं पहचाना। प्रभु! अन्न भाग्य से आपको पाया है, आपके विरदगान (गुणगान) कानों को सुहाने लगे हैं । यह देखकर आपकी शरण में आए हुए इस सेवक की विपदाएँ दूर कीजिए । संसार में मैं कभी पुन: निवास न करूँ, आवागमन न करूं, ऐसा सुख मिले, ऐसा हो कीजिए। आप शरणागत के शरणदाता हैं, सहायक हैं, सहृदय भाई, माता-पिता सब आप हैं, मेरी ओर भी कृपा-दृष्टि कीजिए। भूधरदास हाथ जोड़कर इस ओर खड़ा हुआ है, अपने दास की ओर देखकर, उसे निर्भय कीजिए। ' विरघपना - वृद्धावस्था। झूरना = दु:खी होना। विसूरिया - शोक संतप्त होना, रोना।। भूधर भजन सौरभ

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