Book Title: Bhudhar Bhajan Saurabh
Author(s): Tarachand Jain
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 36
________________ (२१) पारस-पद-नख प्रकाश, अरुन वरन ऐसो ।। टेक ।। मानो तप, कुंजरके, सीसको सिंदूर पूर। रागरोषकाननकों-दावानल जैसो॥१॥पारस. ।। योअमई प्रावकाल, सासो दि उदय लाल। मोक्षवधू-कुच-प्रलेप, कुंकुमाभ तैसो॥ २॥ पारस.।। कुशल-वृक्ष-दल-उलास, इहविधि बहु गुण-निवास। 'भूधर' की भरहु आस, दीनदास केसो॥३॥पारस.॥ हे भगवान पार्श्वनाथ! आपके चरणों के अग्रभाग से फैल रहा लाल रंग का प्रकाश ऐसा है जैसे आपके तप से राग-द्वेषरूपी जंगल में दावाग्नि भड़क उठी हो, और वह ऐसा भास रहा है मानो किसी गजराज का सिन्दूर से पूरित पस्तक सुशोभित हो रहा हो । आपके चरणों का वह प्रकाश ऐसा है जैसे प्रात:काल के उदय होते हुए सूर्य की लाली होती है, केवलज्ञान होने पर जैसे मोक्षरूपी वधू के स्तनों पर कुंकुम के लेप की शोभा हो रही हो वैसी आभा प्रकाशित हो रही है। जैसे पूर्ण विकसित वृक्ष की उल्लसित कोपलें फूटती हैं, वैसे ही हे प्रभु, आपके गुण प्रकट हो रहे हैं । भूधरदास विनती करते हैं कि मैं निर्बल और निधन आपका ही दास हूँ, मेरो आस पूरी कीजिए। अरुन - लाल। कुंजर = हार्थी। रागरोषकानन = राग-द्वेषरूपी वन । भूधर भजन सौरभ

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