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उससे मिल जावेगा। राजुल जी कहती हैं - किन्तु मैं दुखियारी, निराश (जिसे मिलन की आशा नहीं दिखती), बिना सहारे, बिना प्रेम के किस प्रकार जीवनयापन करूँ? हे प्रियतम ! भोग के स्थान पर आपने अभी ही योग धारण कर लिया! जरा चित्त में विचार तो कीजिए ! पूर्व में भगवान ऋषभदेव ने कच्छ व सुकच्छ की कुमारियों के साथ विवाह किया था और उसके पश्चात् ही संयमा धारशहर दस पंथ पर आरूढ़ हुए थे, चले थे। हे प्रियतम ! आप भी वही मार्ग अपनाते । पहले विवाह करते फिर बाद में संयम धारण करते ! मैं उग्रसेन की पुत्री विरह की नदी में अत्यन्त व्याकुल हूँ। ___ आप, राजा समुद्रविजय के पुत्र, धन्य हैं, जो डूबते हुए जीवों को भवसागर के पार उतारते हैं। हमारे साथ भी कृपा करो। भूधरदास कहते हैं कि हम आपकी ही शरण में हैं।
भूधर भजन सौरभ