Book Title: Bhikshu Mahakavyam Author(s): Nathmalmuni, Nagrajmuni, Dulahrajmuni Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 7
________________ पुरोवाक् विक्रम संवत् २०१४ । आचार्य तुलसी ने मुनिश्री नत्थमलजी (बागोर) से कहा-'वि. सं. २०१७ में 'तेरापंथ द्विशताब्दी' का प्रसंग सामने है । आप उस अवसर पर आचार्य भिक्षु के जीवन-दर्शन पर संस्कृत भाषा में एक महाकाव्य की रचना करें। यह आपकी उनके प्रति अपूर्व श्रद्धांजलि होगी।' उन्हीं दिनों डूंगर कालेज (बीकानेर) के संस्कृत विभागाध्यक्ष डा. विद्याधर शास्त्री ने मुनिश्री के दर्शन किए। उन्हें मुनिश्री द्वारा रचित 'अन्यापदेश' ग्रन्थ के कुछ श्लोक दिखाये। शिखरिणी छंद में निबद्ध ग्रंथ की पेन्सिल से लिखी गई प्रारंभिक प्रति में कहीं काट-छांट न देखकर विस्मित होते हुए उन्होंने मुनिश्री से कहा-'महाराज ! आप सरस्वती पुत्र हैं । आप पर सरस्वती का वरदहस्त है । अन्यथा इतने बडे छंद की रचना में कहीं काटछांट न होना असंभव है । आप किसी महाकाव्य की रचना करें।' हम सहगामी संतों ने भी आपसे महाकाव्य के निर्माण की प्रार्थना की। आचार्य प्रवर की प्रेरणा, विद्याधर शास्त्री का अनुरोध और संतों की विनम्र प्रार्थना-ये तीनों इस महाकाव्य की निर्मिति के निमित्त बने । वि. सं. २०१५ के मृगशिर में काव्यरचना प्रारम्भ हुई और वैशाख मास में कार्य संपन्न हो गया। उस समय आप बीकानेर के निकटवर्ती 'उदासर' गांव में थे। प्रतिदिन प्रातः ८ बजे से १२ बजे तक आप काव्यरचना करते और शेष समय स्वाध्याय में बिताते। छह महीनों के अन्तराल में काव्य की परिसम्पन्नता पर आचार्यश्री ने पूछा-'आप प्रतिदिन कितने श्लोक बना लेते थे ?' मुनिश्री ने कहा-'कभी ५०-६० और कभी ५-६ ।' महाकाव्य पूरा हुआ। संशोधन, परिवर्धन, परिवर्तन चलता रहा। अन्त में आचार्यप्रवर के निर्देश पर दृष्टान्तों के एक सर्ग की रचना कर विक्रमाब्द २०१७ तेरापंथ द्विशताब्दी समारोह के मर्यादा महोत्सव के अवसर पर आमेट नगर में मुनिश्री ने इसे गुरुदेव के श्रीचरणों में समर्पित कर दिया। श्रीभिक्षुमहाकाव्य के निर्माण की यह लघु कहानी है। महाकाव्य की महानदी का विषम यात्रापथ बहुत दीर्घ है, परंतु इसका कालपथ अत्यन्त ह्रस्व है । यह मुनिश्री के कर्तृत्व का अनुपम उदाहरण है। इस महाकाव्य में अठारह सर्ग हैं । सभी सर्ग विभिन्न छंदों में निबद्ध हैं। आचार्य भिक्षु की अथ-इति का विवरण देने वाले इस काव्यग्रंथ में लगभग २६०० श्लोक हैं। उनमें प्रकृति-वर्णन, अरावली पर्वतमाला का विस्तृतPage Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 ... 350