Book Title: Bhikshu Mahakavyam Author(s): Nathmalmuni, Nagrajmuni, Dulahrajmuni Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 5
________________ आशीर्वचन 'श्रीभिक्षुमहाकाव्य' काव्य की सारी विधाओं से सम्पन्न महाकाव्य है । वस्तुतः महाकाव्य है । बीसवीं शताब्दी, संस्कृत भाषा और इतना गंभीर काव्य ! एक सुखद आश्चर्य है । मध्ययुग में संस्कृत के उत्कृष्ट काव्यों की रचना हुई। उन्हें आश्चर्य के साथ नहीं देखा जा सकता। उस समय संस्कृत भाषा का महत्त्व था, वातावरण था और सम्मान के स्वर मुखर थे। आज बीसवीं शताब्दी में संस्कृत उपेक्षित है । उसका वातावरण भी नहीं है । गंभीर अध्येताओं की भारी कमी है। इस स्थिति में इस प्रकार के प्रौढ़ काव्य की रचना सचमुच आश्चयपूर्ण घटना है । इस आश्चर्य की पृष्ठभूमि में एक महान् प्रेरणास्रोत हैं-पूज्य कालगणी, जिन्होंने मृत कही जाने वाली भाषा की पुनः प्राण-प्रतिष्ठा की । तेरापंथ धर्मसंघ में उसे नवजीवन प्रदान किया । प्रेरणा का दूसरा स्रोत हैं-गुरुदेव श्री तुलसी का कर्तृत्व । आपने पूज्य कालूगणी की परंपरा को आगे बढ़ाया, तेरापंथ धर्मसंघ में प्राकृत और संस्कृत की नीहारिका की नक्षत्र-माला को सदा गतिशील बनाए रखा । उन नक्षत्रों की विशाल पंक्ति में शासनस्तंभ मुनि नत्थमलजी स्वामी (बागोर) एक उज्ज्वल नक्षत्र के रूप में गतिशील रहे हैं । उन्होंने संस्कृत भाषा में अनेक रचनाएं की हैं। उन सब रचनाओं में 'श्रीभिक्षुमहाकाव्य' एक वाश०८ रचना है। शब्द-विचार, अर्थ-गांभीर्य, उपमा, अलंकार आदि सभी लाक्षणिक विधाओं से सम्पन्न है यह महाकाव्य । प्रस्तुत महाकाव्य की रचना में मुनि डूंगरमलजी स्वामी, मुनि सोहनलालजी, मुनि चंपालालजी, मुनि नगराजजी आदि संतों की भावना का विशिष्ट योग रहा है । यह महाकाव्य बहुत समय से अनुवाद की प्रतीक्षा में झूल रहा था। मुनि दुलहराजजी ने साहस किया और इस गुरुतर कार्य को अपने हाथ में लिया। काव्य की गंभीरता को देखते हुए कार्य जटिल था फिर भी निष्ठा के साथ उन्होंने इसे सम्पन्न किया है। अब यह कार्य विद्वद् जगत् के सामने आ रहा है । विश्वास है, पूज्य गुरुदेव श्री तुलसी के शासनकाल में अनेक संस्कृत ग्रन्थों की रचना हुई है, उनमें यह महाकाव्य विशिष्ट स्थान बनाएगा। इससे आचार्य भिक्षु के जीवन-दर्शन को काव्य की भाषा में समझने का अवसर मिलेगा। १३ अप्रैल, ९७ आचार्य महाप्रज्ञ कालूPage Navigation
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