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मध्यप्रदेशके दिनमार जैन तीर्थ अहार-पाड़ाशाह द्वारा प्रतिष्ठित शान्तिनाथ भगवान्की १८ फुट ऊंची प्रतिमा सं. १२३७ (सन् १९८० ) की है । यहांके संग्रहालयमें ११-१२वीं शताब्दीकी अनेक मूर्तियाँ हैं।
धूबौन-शान्तिनाथ भगवान्की १८ फुट ऊंची प्रतिमा है जिसकी प्रतिष्ठा सेठ पाड़ाशाह द्वारा हुई बतायी जाती है। १६, १५ और १२ फूटकी भी कई मतियां हैं। यहाँ विशेष प्राचीन मूर्ति कोई नहीं है। सम्भवतः शान्तिनाथ मूर्ति १२वीं शताब्दीकी है। यहाँ कुल २५ मन्दिर हैं। इनमें एक गुमटी हनुमान्जीकी है। हनुमान्जीकी मूर्ति ७ फुट ऊँची, पूंछ और वानर मुखवाली है। उनके दोनों कन्धोंपर दो दिगम्बर मुनि बैठे हुए हैं। यह दृश्य पद्मपुराणमें वर्णित उस प्रसंगका स्मरण दिलाता है, जब जलते हुए दो मुनियोंका उपसर्ग हनुमान्जीने दूर किया था।
कुण्डलपुर-यहाँ कुल ६० जिनालय हैं-४० पर्वतके ऊपर और २० तलहटीके मैदानमें। मैदानके मन्दिरों और पर्वतके बीच में वर्धमानसागर नामक विशाल सरोवर है। यहाँ मन्दिर नं. २५ में एक मूर्ति बारहवीं शताब्दी ( वि. सं. ११५७ ) की है।
रेशंदीगिरि-यहां कुल ५१ जिनालय हैं-३६ पहाड़ीके ऊपर और १५ मैदानमें । मन्दिर नं. ११ (पार्श्वनाथ मन्दिर) उत्खननके फलस्वरूप निकला था। उसके साथ १३ मूर्तियाँ भी निकली थीं। ये मन्दिर और मूर्तियाँ सं. ११०९ ( ई. सन् १०५२ ) के हैं । यहाँ एक सरोवरके मध्यमें एक जिनालय बना हुआ है। दृश्य बहुत सुन्दर है। .
बीना-बारहा-यहाँ कुछ प्राचीन मूर्तियाँ हैं। कुछ तो यहींकी हैं, कुछ अन्य स्थानोंसे उत्खनन आदिसे प्राप्त हुई हैं। इनमें कुछ मूर्तियाँ अनुमानतः ११-१२वीं शताब्दीकी हैं। यहाँ मन्दिरोंकी दीवालों और द्वारोंके सिरदलोंपर कुछ मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। उनमें कई मूर्तियाँ अद्भत हैं। एक मूर्ति पार्श्वनाथकी माता वामादेवीकी है। माता शय्यापर लेटी हुई हैं। उनके सिरपर सर्पफण-मण्डप है। देवी चरण सेवा कर रही है। शीर्ष भागपर पद्मावती देवी सर्पफण-मण्डप सहित बैठी है । देवियाँ नृत्य द्वारा माताका मनोरंजन कर रही हैं। एक अन्य तीर्थंकर माताकी मूर्ति है। माता लेटी हैं। दिक्कुमारियाँ सेवारत हैं । शीर्षभागपर पद्मभासन तीर्थकर मूर्ति है । सरस्वतीकी एक मूर्ति बड़ी अद्भुत है। मध्यमें सरस्वती बैठी है। उसके एक और अष्टमातृकाएँ हैं तथा दूसरी ओर नवग्रह बने हुए हैं।
दो बातें यहाँ और भी अद्भत हैं। प्रथम तो यह कि १३ फुट ऊँची भगवान् महावीरको पद्मासन मूर्ति दीवालमें चिनी हुई हैं। यह ईंट-गारे द्वारा बनी हुई है। द्वितीय यह कि ऋषभदेवको मूर्तियोंके समान यहाँ अन्य तीर्थंकर मूर्तियोंपर भी केशोंकी लटें दिखाई पड़ती हैं। यहाँ शान्तिनाथ भगवान्की १५ फुट उत्तुंग एक खड्गासन प्रतिमा है।
__ पनागर-मूल नायक भगवान् ऋषभदेवको ८ फुट ऊंची खड्गासन प्रतिमा अनुमानतः ११-१२वीं शताब्दीकी प्रतीत होती है।
बहुरीबन्द-भगवान् शान्तिनाथकी १४ फुट ऊँची खड्गासन मुद्रावाली यह प्रतिमा सं. १०७० ( ई. सं. १०१३ ) में प्रतिष्ठित हुई थी।
कोनी- यहाँके मन्दिर पर्याप्त प्राचीन लगते हैं। यहाँका सहस्रकूट चैत्यालय और नन्दीश्वर जिनालय रचना-शैलीकी दृष्टि से अद्भुत हैं।
पटनागंज-यहां नदी-तटपर २५ जिनालय हैं। यहाँ मूर्तियां अधिक प्राचीन नहीं हैं। किन्तु सहस्रफणावलि युक्त दो पाश्वनाथ प्रतिमाएँ विशेष दर्शनीय हैं।
मढ़िया-यहाँ १३ मन्दिर और २४ मन्दरियाँ हैं । यहाँ पुरातत्त्व सामग्री कुछ भी नहीं है। सिद्धवरकूट-क्षेत्रपर कुल १० मन्दिर हैं । यहाँ ओंकारेश्वरके पुरावशेषोंमें से २-३ मूर्तियां