Book Title: Bharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Author(s): Balbhadra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 310
________________ मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थं २७७ कलाका विनाश ये मूर्तियाँ किस मन्दिरकी थीं, यह जाननेका कोई साधन आज शेष नहीं है । जितनी मूर्तियाँ यहाँसे अब तक उपलब्ध हो चुकी हैं, उनसे अधिक संख्या में अभी भग्न दशामें पड़ी हुई हैं और यह भी असम्भव नहीं है कि भूगर्भ में अभी कुछ मूर्तियाँ दबी पड़ी हों । अब तक पुरातत्त्व विभागकी ओरसे यहाँ उत्खनन कार्यं नहीं हुआ । जो मूर्तियां मिली हैं, वे या तो ध्वस्त मन्दिरके मलबे से निकाली गयी हैं अथवा किसी खेतमें जोतते समय निकली हैं । अस्तु । एक मूर्तिके अभिलेखमें उस जिनालयका भी नाम दिया गया है जिसमें वह मूर्ति विराजमान की गयी थी । उसमें पाठ है 'शान्तिनाथ चैत्ये ।' अर्थात् शान्तिनाथ चैत्यमें । आज न तो वह शान्तिनाथ चैत्य विद्यमान है और न शान्तिनाथ भगवान्की वह मूलनायक प्रतिमा ही उपलब्ध है जिसके कारण मन्दिरका नाम शान्तिनाथ चैत्य रखा गया । सम्भवतः दोनों ही नष्ट हो गये । 'नष्ट हो गये' यह कहना भी सम्भवतः यथार्थंके विरुद्ध होगा, नष्ट कर दिये गये, यही कहना तत्कालीन ऐतिहासिक घटनाओंके परिप्रेक्ष्य में सुसंगत लगता है । तत्कालीन ऐतिहासिक घटनाएँ क्या हैं, यह जाननेके लिए परमार राजवंशके उस कालमें एक दृष्टि डालनी होगी जब वह राजनीतिक क्षितिजपर धूमिल पड़ते-पड़ते अस्त हो गया । तेरहवीं शताब्दीके उत्तरार्धमें परमार सत्ता निर्बल हाथों में पहुँच गयी थी। चारों ओरसे उनके ऊपर आक्रमण होने लगे । दक्षिणमें यादव, उत्तर में चाहमान, पश्चिममें बघेल और पूर्व में कलचुरि परमारोंके प्रबल शत्रु थे और वे निरन्तर आक्रमण करते रहते थे । इस प्रकार परमारोंका राज्य चारों ओरसे शत्रुओंसे घिरा हुआ था । सबसे बड़े शत्रु थे वे आक्रमणकारी मुसलमान जिन्होंने इस काल तक उत्तरी भारतका बहुत बड़ा भाग अपने अधिकारमें ले लिया था और अब मालवाका द्वार खटखटा रहे थे । मालवापर आक्रमणका यह दौर इल्तमशने ही प्रारम्भ कर दिया था । उसने सन् १२३३३४ में भेलसा (विदिशा ) के किलेपर अधिकार कर लिया और फिर उज्जैनको रौंद डाला । सन् १३०५ में तो मुसलमानोंने परमार सत्ताको सदाके लिए समाप्त कर दिया । मालवापर अधिकार होते ही उन्होंने भीषण रक्तपात, बलात्कार और दमनचक्र चालू कर दिया। उन्होंने पवित्र धार्मिक स्थानोंका - मन्दिरों और तीर्थोंका व्यापक विनाश किया तथा मूर्तियोंको बुरी तरह तोड़फोड़ डाला । उस समय बदनावर जैन धार्मिक केन्द्रके रूपमें विख्यात था। यहाँके जैन मन्दिरों और मूर्तियों की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई थी। इसलिए यह कल्पना करना तर्कसंगत होगा कि उस समय तथा बाद में आनेवाले मुस्लिम आक्रान्ताओंने अपने धर्मोन्मादमें यहाँके जैन मन्दिरों और मूर्तियों का क्रूर विनाश किया। यह सम्भव है कि जैनोंने आपत्काल समझकर मन्दिरको समस्त मूर्तियों को किसी सुरक्षित तलघर में पहुँचा दिया हो, जिसका पता इन धर्मोन्मादी आक्रमणकारियोंको भी लग गया और उन्होंने उन एकत्रित समस्त मूर्तियोंको तोड़-फोड़ डाला । यह भी सम्भावना है, आक्रमणकारियों द्वारा तोड़ी गयी मूर्तियां बादमें एक स्थानपर लाकर रखी गयी हों । यह विनाश उस विनाशसे पृथक् था जिसका उल्लेख पूर्व में कर आये हैं । जितनी मूर्तियां यहां मिलती हैं, उनमें अधिकांश जैन हैं और श्याम पाषाणकी हैं । यहाँ वैष्णव और शैव धर्मंकी भी परमार कालकी कई मूर्तियाँ मिलती हैं । ध्वस्त मन्दिरोंमें - जिनको कुल संख्या १२ है - जैन मन्दिरोंके अतिरिक्त वैष्णव और शेव मन्दिर भी हैं ।

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