Book Title: Bharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Author(s): Balbhadra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 354
________________ मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ ३२१ कर्मोंका नाश करनेसे मिली थी। प्राचीन कालसे यहाँसे मुक्ति प्राप्तकी जो धारणा चली आ रही है, वह भी एक तथ्य है जो हमें यह स्वीकार करनेको प्रेरित करता है कि यही स्थान सिद्धवरकूट है। वर्तमानमें जो क्षेत्र है वह ओंकारेश्वरसे बहुत निकट है। हिन्दू पुराणोंमें ओंकारेश्वरको १२ ज्योतिलिंगोंमें से एक ज्योतिलिंग माना है। ओंकारेश्वर मन्दिर जिस पहाड़ीपर है, वहां प्राचीन मन्दिरोंके भग्नावशेष पड़े हुए हैं। ये पुरातत्त्व विभागके अन्तर्गत हैं। यदि यहाँ खुदाई की जाये तो यहाँ जैन कलावशेष प्रचुर परिमाणमें मिलनेकी सम्भावना है। क्षेत्रका विकास क्षेत्रका निश्चय होनेपर इन्दौर पट्टके भट्टारक महेन्द्रकीतिजीने क्षेत्रके उद्धार कार्यमें अपना पूरा ध्यान लगाया। उनके आदेशानुसार श्री भूरजी सूरजमलजी मोदी इन्दौर और उनके परिवार-जनोंने प्राचीन बड़े मन्दिरका जीर्णोद्धार करनेका संकल्प किया। माघ सुदी ३ संवत् १९४० से मन्दिरके जीर्णोद्धार करनेका कार्य आरम्भ हुआ तथा मन्दिर और बिम्ब-प्रतिष्ठा संवत् १९५१ में श्री हकमलजी शोलापुरने भट्टारक महेन्द्रकीर्तिजी द्वारा करायी। एक बार इस भूमिको सिद्धक्षेत्र स्वीकार करनेके बाद इस क्षेत्रका विकास जिस द्रुतगतिसे हुआ है वह अवश्य ही आश्चर्यजनक है । कावेरी नदीसे क्षेत्र पर्यन्त पक्का घाट और सीढ़ियां भी बन चुकी हैं। क्षेत्र दर्शन मान्धाता ( ओंकारेश्वर ) में बस स्टैण्डके निकट ही क्षेत्रको धर्मशाला है। ओंकारेश्वर रोडपर भी बस स्टैण्डके निकट सेठ कल्याणमल त्रिलोकचन्द इन्दौरवालोंकी धर्मशाला है। मान्धातासे सिद्धवरकूट तक नावों द्वारा नर्मदा-कावेरी संगमको पारकर पहुंचना होता है। इन दोनों नदियोंके बीचमें ओंकारेश्वर पहाड़ी है, जिसके ऊपर ओंकारेश्वर मन्दिर और कालभैरवका मन्दिर बना हुआ है । नावमें जाते हुए यह मन्दिर और पहाड़ी पड़ती है। नाव द्वारा लगभग एक मील जाना पड़ता है। क्षेत्रकी ओरसे नाव भाड़ा निश्चित है। नावसे क्षेत्रके घाटपर उतरते हैं। यदि क्षेत्रके दर्शन करके तत्काल वापस जाना हो तो नाव वापसी करनी चाहिए। नाववाला घाटपर रुका रहता है। आवश्यक सूचनाएँ मान्धाताको जैन धर्मशालाके व्यवस्थासे ज्ञात कर लेना उपयोगी रहता है। घाटपर उतरकर पक्की सीढ़ियां मिलती हैं। यहाँसे मार्ग क्षेत्र तक जाता है। क्षेत्रपर पहुँचकर विशाल द्वार मिलता है। मन्दिर, धर्मशालाएं और कार्यालय एक स्थानपर हैं। इनके चारों ओर अहाता है। प्रवेश-द्वारके निकट ही क्षेत्रका कार्यालय बना हुआ है। सामने ही ऊंचाईपर मन्दिर बने हुए हैं। वहां पहुंचनेके लिए माबलको सीढ़ियां बनी हुई हैं। मध्यमें मार्बलका खुला चबूतरा है जिसके तीन ओर भव्य जिनालय हैं। सभी जिनालय शिखरबन्द हैं। उनकी नमस्पर्शी उन्नत श्वेत धवल शिखर-पंक्ति बड़ी मनोज्ञ प्रतीत होती है। मन्दिरोंके निकट सामने ही उद्धत नर्मदा और प्रशान्तक कावेरी बहती है, मन्दिरोंके तीन ओर सघन जंगल हैं। सिद्धि-प्राप्त महामुनियोंकी तपःपूत साधना यहाँके वातावरणमें आज भी व्याप्त है। यहां आकर मानवका बोझिल मन सहज शान्ति, निराकुल आनन्द और दिव्य सपनोंसे भर उठता है। __ यहाँके सभी मन्दिरोंपर क्रम संख्या पड़ी हुई है। अत: दर्शनोंमें कोई असुविधा नहीं होती। मन्दिरोंका विवरण इस प्रकार है

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