________________
७५
मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ यद्यपि इस प्राचीन मन्दिरकी दशा अभी बहुत शोचनीय नहीं है किन्तु कोई व्यवस्था और देखभाल न होनेसे मन्दिरको क्षति पहुंच रही है। अहाता टूटा हुआ है। अतः अवांछनीय लोगों और पशुओंका यहाँ अव्याहत प्रवेश है। गर्भगृहोंमें किवाड़ें नहीं हैं। गर्भगृहोंके द्वारोंपर कँटीली झाँड़ियाँ लगी हुई हैं, जिस किसी प्रकार इन्हें हटाकर भीतर प्रवेश भी किया जाये तो गर्भगृहोंमें कडा-कचरा पडा हआ है। चमगादडों, ततैयों और मकडियोंने सारे गर्भगहोंको अपना डेरा बना लिया है । देखभाल न होनेके कारण ही यहाँ दो मूर्तियोंके सिर कट चुके हैं। इस मन्दिरके चारों
ओर जंगल है। आसपासमें भग्नावशेष बिखरे पड़े हैं। यहाँके जंगलोंमें-से भगवान् शान्तिनाथकी १८ फुट ऊँची एक मूर्तिको ले जाकर नसियाजी रामकुई, लश्करमें विराजमान कर दिया गया है। सुरक्षाकी दृष्टिसे यह कार्य बहुत प्रशंसनीय कहा जायेगा। किन्तु उचित यही है कि प्राचीन मूर्तियाँ अपने मूले स्थानपर रहें और वहीं उनकी सुरक्षाको समुचित व्यवस्था हो। इसका अपना पृथक् ऐतिहासिक महत्त्व है।
खनियाधाना और उसके निकटवर्ती क्षेत्र मार्ग
खनियाधाना मध्यप्रदेशमें सेण्ट्रल रेलवेके बसई स्टेशनसे ३७ कि. मी., चन्देरीसे ५३ कि. मी. और शिवपुरीसे १०२ कि. मी. दूर है। प्राचीन मूर्तियां
यहाँ दो दिगम्बर जैन मन्दिर हैं। इनमें से एक मन्दिरमें वि. सं. ११००, १२१० और १३१८ की प्राचीन प्रतिमाएं विराजमान हैं । मन्दिरके सामने एक प्राचीन मानस्तम्भ भी है। __इस क्षेत्रको चौरासी दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कहते हैं। इसकी एक कमेटी है तथा इसका कार्यालय यहींपर है। यहाँ तथा इसके निकट अनेक स्थान ऐसे हैं जहाँ जैन पुरातत्त्वको सामग्री प्रचुर मात्रामें मिलती है। इस सामग्रीमें मन्दिर, मूर्तियां, मानस्तम्भ और अभिलेख सम्मिलित हैं। यह सामग्री प्रायः ईसा की दसवीं-ग्यारहवीं शताब्दीके बादकी है। इनके निर्माता जैन श्रावकश्राविका ही थे। यह काल चन्देल, कलचुरि, प्रतिहार आदि वंशोंके उत्कर्ष-अपकर्षका रहा है किन्तु इन वंशोंके नरेशोंने कला और संस्कृतिको पूर्ण प्रश्रय और संरक्षण प्रदान किया था। फलतः इस कालमें इन नरेशोंके राज्योंमें हिन्दू और जैन संस्कृति एवं कलाको पल्लवित होनेका समुचित अवसर मिला । इस काल तक बौद्ध धर्म भारतसे प्रायः लुप्त हो चुका था। अतः इस कालमें बौद्ध कला निष्क्रिय रही।
इस कालमें अन्य स्थानोंके समान खनियाधाना और उसके निकटवर्ती स्थानोंपर भी जैन कलाको बहुविध संरचना हुई, कलाके नव-नवीन रूपोंको उद्भावना हुई और कलाके क्षितिजपर नये आयाम प्रकाशमें आये। इस बातका समर्थन खनियाधानाके आसपास मिलनेवाली प्रचुर जैन पुरातन सामग्री और उसके भग्नावशेषोंसे सहज ही हो जाता है।
यहां ऐसे ही कुछ क्षेत्रोंका संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है। ये सब शिवपुरी जिलेमें हैं।