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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ दिया। उसने नवीन किला बनवाया। उसके पश्चात् उसके पुत्र जयसिंहने किलेका निचला भाग बनाया और उसका नाम जैनागर रखा। इसको जयनगर भी कहते थे। उस समय इस नगर में लगभग दो सौ घर जैनोंके थे । राज्यमें जैनोंका बड़ा सम्मान और प्रभाव था। - संवत् १८७२ में इस नगरपर ग्वालियरके सिन्धिया नरेशके सेनापति सर जॉन वैप्टिसने
करक उस ग्वालियर राज्यमें सम्मिलित कर लिया। स्वतन्त्रताके पश्चात देशी रियासतोंके भारतमें विलय होनेपर बजरंगढ़ मध्यप्रदेशके गुना जिलेके अन्तर्गत आ गया।
___ बजरंगढ़ आज भी है, उसके किले, महल आदि भी हैं, किन्तु बिलकुल श्रीहीन। नगरकी चहल-पहल और रौनक भी नहीं रही। जैन लोग भी प्रायः गुना आदि बड़े शहरोंमें जा बसे। किन्तु श्री शान्तिनाथ दिगम्बर जैन अतिशय-क्षेत्र नगरमें मस्तकपर लगे हुए सौभाग्य-बिन्दुकी तरह अब भी आकाशमें जयध्वज लहराता हुआ खड़ा है। उसके आकाशचुम्बी श्वेत शिखरोंपर स्वर्णकलश सूर्यको खिलती धूपमें अब भी अपना तेज चारों ओर विकीर्ण कर रहे हैं। सृष्टि परिवर्तनशील है, किन्तु भगवान् शान्तिनाथके चरणोंमें लोटा हुआ बजरंगढ़ सदा जीवित है। शान्तिके अधिष्ठाता महाप्रभुका आशीर्वाद जो उसे प्राप्त है।
मार्ग
__ श्री शान्तिनाथ दिगम्बर जैन अतिशय-क्षेत्र बजरंगढ़ जानेके लिए पश्चिमी रेलवे लाइनके कोटा-बीना रेल-मार्ग द्वारा गुना आ सकते हैं। बस मार्गसे आगरा-बम्बई सड़कपर अथवा इन्दौरग्वालियर सड़कपर गुना पड़ता है। बजरंगढ़ गुना-आरौन मार्गपर गुनासे सात कि. मी. दूर है । यह क्षेत्र सड़कके निकट ही है। बजरंगढ़में यात्री प्रमुख मन्दिर बाजारके जैन मन्दिरकी धर्मशालामें ठहर सकते हैं । अथवा गुनामें ठहरकर वहाँसे लोकल बसों द्वारा या ताँगों द्वारा बजरंगढ़ क्षेत्रकी
यात्रा कर सकते हैं। गुना जिलेका मुख्यालय है और अच्छा शहर है। यहाँ एक जैन धर्मशाला । और दो जैन मन्दिर हैं । गुनासे बजरंगढ़के लिए सुबहसे शाम तक लोकल बसें चलती रहती हैं। व्यवस्था
क्षेत्रको व्यवस्थाके लिए एक प्रबन्ध समिति बनी हुई है, जिसमें गुना और बजरंगढ़के सदस्य हैं।
थूवौन अतिशय क्षेत्र
श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र थूवीन मध्यप्रदेशके ग्वालियर संभागमें गुना जिलेके अन्तर्गत तहसील मुंगावलीमें पार्वत्य प्रदेशमें अवस्थित है। यह अतिशय-क्षेत्रके रूपमें प्रसिद्ध है। यहाँपर देवकृत अतिशयोंकी अनेक घटनाएँ किंवदन्तीके रूपमें प्रसिद्ध हैं। कहा जाता है कि सेठ पाडाशाहका रांगा यहाँ आकर चांदी हो गया था। पाड़ाशाहको लेकर इस प्रकारकी न जाने कितनी किंवदन्तियाँ विभिन्न क्षेत्रोंपर प्रचलित हैं। बजरंगढ़में उन्हें एक पारसमणि मिली थी, जिससे वे सोना बनाकर मन्दिर बनवाया करते थे। अहारजीमें एक शिलापर राँगा उतारनेपर वह सारा राँगा चाँदी हो गया। थूवौनमें भी उनका रांगा चांदी हो गया और भी न जाने किन-किन क्षेत्रोंपर