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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थं
चलनेपर एक भग्न मन्दिर मिलता है। कहते हैं, यह जैन मन्दिर था । यह तोमरवंशी मानसिंह नरेश कालका बना हुआ है। वर्तमानमें इसमें कोई मूर्ति नहीं है ।
यहाँसे लगभग ३-४ फलींग आगे जानेपर एक ऊंचे टीलेपर प्राचीन जैन मन्दिरोंके भग्ना•वशेष विस्तृत भूभागमें बिखरे पड़े हैं । भग्नावशेषोंके मध्य एक जीर्ण-शीर्णं जैन मन्दिर खड़ा हुआ है, मानो जरासे जर्जरित वह अपनी मृत्युकी घड़ियाँ गिन रहा हो । मन्दिरमें केवल गर्भगृहका ही कुछ भाग अवशिष्ट है । उसमें लगभग १८ फुट उन्नत तीर्थंकर - मूर्ति कायोत्सर्गासन में विराजमान है । उसका सिर काट लिया गया है। इसके अतिरिक्त हाथ, लिंग और पैर भी खण्डित हैं । मूर्तिका पीठासन मिट्टी में दबा हुआ है। मूर्तिके बायीं ओर यक्षी खड़ी है । कानोंमें 'कुण्डल, गले में गलहार है । घुटनोंसे नीचे का भाग दबा हुआ है । दूसरी ओर यक्षकी मूर्ति नहीं है, सम्भवतः वह नष्ट कर दी गयी । मूर्ति अभिषेकके लिए दोनों पार्श्वोमें कुछ सीढ़ियाँ हैं । मन्दिर के ऊपर विशाल शिखर बना हुआ है जो मीलों दूरसे दिखाई देता है । मन्दिरका द्वार और मूर्तिके पृष्ठभागकी दीवार टूटी पड़ी है। गर्भगृहमें मलबा पड़ा हुआ है ।
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वहाँ से लौटकर उसी स्थानपर पहुँचते हैं जहाँसे कच्चा मार्ग प्रारम्भ हुआ था । वहाँ बायीं ओरको एक मागं एक ऊँचे टीलेकी ओर गया है। वहाँके मन्दिर और शिखर दूरसे ही दिखाई पड़ते हैं । लगभग ६ फर्लांग चलनेपर एक पक्का अहाता मिलता है, जिसमें एक ही पंक्ति में ४ गर्भगृह बने हुए हैं तथा प्रत्येकके ऊपर विशाल शिखर निर्मित हैं। चारों ही शिखर विशाल हैं । चारों गर्भगृहों का परिचय दायीं ओरसे बायीं ओर को
प्रथम गर्भगृहका द्वार पाषाण निर्मित है । द्वारके शीर्ष पर तीन कोष्ठकों में तीन पद्मासन ( प्रत्येक कोष्ठक में एक ) अहंन्त प्रतिमाएँ हैं। मध्यकी प्रतिमाका आकार सवा फुट और दोनों ओरकी प्रतिमाओं का आकार एक फुट है। द्वारके स्तम्भोंमें सूक्ष्म अलंकरण हैं तथा स्तम्भों में नीचे के भागमें द्वारपाल बने हुए हैं ।
द्वारसे दो सीढ़ियाँ नीचे उतरकर गर्भगृहमें पहुँचते हैं। गर्भगृह लगभग १२ फुट लम्बा और इतना ही चौड़ा है । इसमें १६ फुट ऊँची तीर्थंकर प्रतिमा कायोत्सर्गासन में विराजमान है । प्रतिमाके दोनों ओर चमरवाहिका खड़ी हुई हैं । प्रतिमाका अभिषेक करनेके लिए दोनों ओर सीढ़ियाँ तथा प्रतिमा की छाती के सामने पाषाण- पट्टिका ( प्लेटफॉर्म ) बनी हुई है ।
दूसरे गर्भगृह द्वारपर भी तीन पद्मासन अर्हन्त प्रतिमाएँ बनी हुई हैं। गर्भगृहमें १८ फुट ऊँची खड्गासन प्रतिमा विराजमान है । मूर्ति लेखके अनुसार इसकी प्रतिष्ठा विक्रम संवत् १५२६ वैशाख सुदी ६ को हुई थी। पादपीठपर शंख लांछन बना हुआ है । अतः यह मूर्ति बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथकी है। मूर्ति बड़ी भव्य है । मूर्तिके सिरपर अद्भुत केशवलय है । घुटनोंसे ऊपर दोनों ओर कमलपुष्प हाथमें लिये हुए दो देव खड़े हैं। उनके नीचे दोनों ओर वाद्य-यन्त्र लिये और अलंकार धारण किये हुए गन्धवं खड़े हैं। उनके नीचे यक्ष और यक्षी ( गोमेद और अम्बिका ) खड़े हुए हैं ।
बायीं ओर पीठासनपर ८ फुट ऊँची एक तीर्थंकर मूर्ति खड्गासनमें विराजमान है किन्तु मूर्तिचोर इसका सिर काटकर ले गये ।
तीसरे गर्भगृह पाषाण-द्वारके ऊपर एक अर्हन्त प्रतिमा बनी हुई है । अन्दर १३ फुट ऊँची खड्गासन मुद्रामें तीर्थंकर - प्रतिमा विराजमान है ।
चौथे गर्भगृह द्वारमें भी एक अहंन्त प्रतिमा बनी हुई है। गर्भगृहमें विशाल तीर्थंकरप्रतिमा बनी हुई है, किन्तु इसका भी सिर मूर्तिचोर काटकर ले गये ।