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मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ क्षेत्र वर्शन - सिहौनिया ग्रामके बाहर जहां पुलिस स्टेशन है, वहां मैदानमें पाषाणका प्राचीन मानस्तम्भ बना हुआ है। यह एक टीलेपर अवस्थित है। यह भूमिके ऊपर आठ फुट ऊंचा है। किन्तु इसका कुछ भाग भमिके नीचे भी दबा हुआ है। यद्यपि वर्तमानसे इसके शीर्षपर कोई मति नहीं है. किन्त ध्यानपूर्वक देखनेसे स्पष्ट प्रतीत होता है कि इसके शीर्ष भागपर पहले कोई वेदिका और उसमें तीर्थंकर मूर्तियां रही होंगी। प्रतिष्ठाशास्त्रोंके अनुसार मानस्तम्भका निर्माण जिन-मन्दिरके सामने होता है। जिस टीलेपर प्रस्तुत मानस्तम्भ बना हुआ है, यदि उस टीलेकी खुदाई की जाये तो प्राचीन मन्दिरके अवशेष प्राप्त होनेकी सम्भावनाको इनकार नहीं किया जा सकता।
____ यहाँसे लगभग एक किलोमीटर दूर सिहोनिया अतिशय क्षेत्र है । क्षेत्रके मन्दिरके तीन ओर धर्मशालाके कमरे बने हुए हैं। उनमें कुछ पूर्ण निर्मित हैं, कुछ अर्धनिर्मित हैं । मन्दिरके सामनेवाले भागमें अभी कुछ नहीं बना है, किन्तु वहाँ मुख्य प्रवेशद्वार तथा कार्यालय आदि बनानेकी योजना है।
प्रांगणके मध्यमें जिनालय बना हुआ है। जिनालयमें केवल महामण्डप ( हॉल ) है। प्रवेश-द्वारके बिलकुल सामने दीवालके सहारे भगवान् शान्तिनाथ सस्मित मुद्रामें खड़े हुए हैं। छवि अत्यन्त सौम्य है। मुखकी छविसे करुणा, शान्ति और वीतरागताकी त्रिधारा प्रवाहित होती हुई प्रतीत होती है। आकुल-व्याकुल करनेवाले जीवन-प्रसंगोंसे ऊबे हुए व्यक्तिको यहां भगवान्के चरणोंमें पहुंचते ही अपूर्व शान्तिका अनुभव होता है। भगवान् शान्तिनाथका सबसे बड़ा अतिशय यही है।
भगवान् शान्तिनाथकी यह मूर्ति बलुए पाषाणकी हलके कत्थई वर्णकी खड्गासन मुद्रा में है। ऊपरसे चरणों तकका भाग भूमिके ऊपर है और पीठासन अभी भूमि-गर्भमें है। मूर्तिकी अवगाहना १३ फुट है तथा अनुमानतः ३ फुट भूमिके गर्भमें पीठासन है। मूर्तिके दायें कन्धेके निकट एक शिलालेख अंकित है। लेख अस्पष्ट है, किन्तु प्राचीन है। उसमें संवत् १४१ पढ़ने में
आया है । सम्भवतः प्रारम्भका अंक १ पढ़नेमें नहीं आता। मूर्तिकी रचना-शैलीको देखकर यह ग्यारहवीं शताब्दीकी अनुमित की जाती है। इस मूर्तिके दोनों ओर भगवान् कुन्थुनाथ और अरनाथकी मूर्तियां विराजमान हैं । ये दोनों मूर्तियां भी खड्गासन मुद्रामें हैं तथा इनकी अवगाहना आठ फुट है। इनके पादपीठपर क्रमशः बकरा और मछली ये लांछन उत्कीणं हैं। मध्यप्रदेशमें विशेषतः बुन्देलखण्डमें अतिशय क्षेत्रोंपर शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ और अरनाथ–तीनोंकी प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित करानेका प्रचलन मध्यकालमें विशेष रूपसे रहा है। ये तीनों ही कामदेव, चक्रवर्ती, हस्तिनापुरके निवासी और तीर्थंकर थे। सम्भवतः जीवन-समानताका यह तथ्य ही तीनों तीर्थंकरोंकी मूर्तियोंको एकत्र प्रतिष्ठित करानेमें प्रेरक कारण रहा है।
___इन तीनों मूर्तियोंके अतिरिक्त यहाँ १९ मूर्तियां और हैं। ये सभी मूर्तियाँ सिहौनियामें भूगर्भसे ही प्रकट हुई हैं। इनमें एक मूर्ति पांच फुट नौ इंच ऊँची है। यह मूर्ति बड़ी प्रभावपूर्ण है। इसके सिरपर जटाजूट, मुखपर भव्य दाढ़ी, गलेमें गलहार, स्कन्धसे बगलमें लटकता हुआ यज्ञोपवीत, सिरके पीछे प्रभावतुल, कटिमें मेखला, कलाईमें दस्तबन्द और बांहोंमें भुजबन्द हैं। दायां हाथ जंघे पर रखा हुआ है तथा बायें हाथमें परशु है। चरणोंके दोनों ओर करबद्ध सेवकसेविका खड़े हैं। यह मूर्ति लोकपाल या दिक्पालकी है। लोकपाल या दिक्पालकी इस प्रकारकी मूर्तियाँ खजुराहोमें भी मिलती हैं।